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श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, चौथा भाग ११३ दस समाचारी। भगवान महावीर के दस स्वम तथा उनका फल । दस सराग सम्यग्दर्शन । दस संज्ञाएं । नारकों में दस प्रकार की वेदना । छमस्थ द्वारा अज्ञेय दस बातें । दस दिशाएं। कर्मविपाक दशा के दस अध्ययन । उपामकदशा के दस अध्ययन । अन्तगडदशा के दस अध्ययन । अनुत्तरोववाई के दस अध्ययन । भाचारदशा के दस अध्ययन । प्रश्नव्याकरण के दस अध्ययन। बन्धदशा के दस अध्ययन । द्विगृद्धिदशा के दस अध्ययन । दीर्घदशा के दस अध्ययन । संक्षेपितदशा के दस अध्ययन । उत्सपिणी और अवमर्पिणी प्रत्येक का काल दस कोड़ाकोड़ी सागरो-. पम है। (३० ७४४-७५६)
दस प्रकार के नारकी बीव । पसभा में दस लाख नरकावास हैं। दस सागरोपम, दस पन्योपम तथा दस हजार वर्ष आयु वाले जीव । शुभकर्म बाँधने के दस कारण । दस प्रकार का प्राशंसा (इच्छा)प्रयोग। दस प्रकार का धर्म । दस स्थविर । दस पुत्र केवली के दस अनुत्तर । अढाई द्वीप में दस कुरुप दस महादुम । वहां रहने वाले दस बड़ी वृद्धि वाले देव । दुपमा भौर सुषमा जानने के दस चिन्ह । दस कल्पवृक्ष । (सू०७५७-७६६) __ अतीत तथा भावी उत्सर्पिणो के दस कुलकर। दस वचस्कार पर्वत । इन्द्राधिष्ठित कल्प और उन पर रहने वाले दस इन्द्रः । उनके दस विमान | दसदसमिका मिक्षप्रतिमा । दस संसारी जीव । दस सर्वजीव । सौ वर्ष आयु वाले पुरुष की दस दशाएं । दस तृणवनस्पतिकाया श्रेणियों का विष्कम्मदस योजना दूसरे पर तेजोलेश्या छोड़ने के दस कारण । दस आश्चर्य (२०७६७-७७७)
रत्नप्रभा के काण्डों की मोटाई ।द्वीप, समुद्र, द्रह, नदी आदि का विस्तार कृचिका और अनुराधा नक्षत्रों की दसवें मंडल में गति। ज्ञान की वृद्धि करने वाले दस नक्षत्रा चतुष्पद स्थलचर पन्वेन्द्रिय