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श्री जैन सिद्धान्त बोलसंग्रह, चौथा भाग १११ नौब्रह्मचर्य गुप्तियां अभिनन्दन भगवान् से सुमतिनाथ भगवान् नौ कोडाकोडी सागरोपम वाद हुए। नौ सद्भाव पदार्थ या तत्व । नौ संसारी जीव । पृथ्वी आदि की गतागत । नौ सर्वजीव । रोगोत्पत्ति के नौ कारण । दर्शनावरणीय कर्म नौ । चन्द्र के साथ योग करने वाले नौ नक्षत्र । रत्नप्रभा से तारामण्डल की ऊँचाई । नव योजन मत्स्य । वलदेव और वासुदेवों के माता पिता । चक्रवर्ती की नौ महानिधियां सू० ६६१-६७३)
नौ विगय । नौ स्रोतपरिस्रव । नौ पुण्य । नौ पापस्थान । नौ पापभत । नौ नैपुणिक वरतु । भगवान् महावीर के नौ गण । नव कोटिपरिशुद्ध मिक्षा । ईशानेन्द्र की अग्रमहिपियाँ और उनकी स्थिति | नौ देवनिकाय | नव ग्रैवेयक | ग्रेवेयक विमानों के नाम नौ मायुपरिणाम ! नवनवमिका मिक्खुपडिमा । नौ प्रायश्चित्त । नौ कूट | पारवनाथ भगवान् की अवगाहना नौ रनियाँ । भगवान् महावीर के शासन में तीर्थङ्कर गोत्र वॉधने वाले नव जीव । आगामी उत्सपिणी में होने वाले नव तीर्थकर तथा उनकी कथाएं । (सू० ६७४-६६३)
चन्द्र के पीछे होने वाले नौ नक्षत्र । नव सौ योजन ऊँचाई वाले विमान । विमलवाहन कुलकर की ऊँचाई नव सौ धनुष । इस आरे के नव कोड़ाकोड़ी सागरोपम बीतने पर भगवान् ऋपम देव हुए। नव सौ योजन वाले द्वीप । शुक्र महाग्रह की नव वीथियाँ। नौ नोकपायवेदनीय । नव कुलकोटि वाले जीव । नव प्रकार से कर्मवन्ध । नव प्रादेशिक स्कन्ध । (सू० ६६४-७०३) .
दसवाँ स्थानक दस लोकस्थिति । दस शब्द । दस अतीत और अनागत इन्द्रियार्थ । पुद्गल चलन के दस कारण । क्रोधोत्पत्ति के दस कारण। दम संयम । दम अमंयम । दस संवर । दस अमंवर । अहंकार के
। स्थानक