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श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, चौथा भाग २०६ सात सौ योजन ऊंचाई वाले विमान । सात रनियों की ऊंचाई चाले सात देव । सात द्वीप । सात समुद्र । सात श्रेणियाँ । चमरेन्द्र की सात सेनाएं तथा सात सेनापति । वलीन्द्र, धरणेन्द्र, भूतानन्द आदि इन्द्रों की सात सात सेनाएं, सेनापति और कक्षाएं। (५० ५६३-५८३)
सात वचनविकल्प। सात विनय । सात मन विनय । सात वचन । विनय!सात काय विनया सात लोकोपचार विनय । सात समुद्घात ।
सात निव । सात सातावेदनीय का अनुमाव । सात असातावेदनीय का अनुभाव । प्रत्येक दिशा में उदित होने वाले सात नक्षत्र । सात तारों वाले नक्षत्र । पर्वतों के सात कूट । वेइन्द्रिय की सात लाख कुलकोटि । कर्मपुद्गल ग्रहण करने के सात स्थान । सात सप्रादेशिकस्कन्ध । (मु० ५८४-५६३)
आठवाँ स्थानक एकलविहार पडिमा के आठ स्थान । योनिसंग्रह पाठ। कर्मपाठ। माया की पोलोचना न करने के आठ स्थान । माया की आलोचना के पाठ स्थान । माया का स्वरूप तथा आलोचना न करने के आठ फल। पाठ संवर आठसर्श आठ लोकस्थिति पाठ गणिसम्पदा। आठ महानिधि | आठ समितियाँ । (सू० ५६४-६०३)
आलोचना देने वाले के आठ गुण । आलोचना करने वाले में आठ गुण पाठ प्रायश्चिच । भाठ मदस्थान | आठ प्रक्रियावादी। आठ महानिमित्त । आठ वचनविभक्ति । छद्रस्थ द्वारा अज्ञेय पाठ चातें। पाठ आयुर्वेद शक्रन्द्र, ईशानेन्द्र तथा वैश्रमण की आठपाठ अग्रमहिपियाँ । आठ महाग्रह । पाठ तृणवनस्पतिकायिक । चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा में आठ असंयम तथा अहिंसा में पाठ संयम ।
आठ सूक्ष्म । भरत चक्रवर्ती के साथ आठ सिद्ध । भगवान पार्श्वनाथ के पाठ गणधर । (२०६०४-६१७)