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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह चौथा भाग
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देव । श्रवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा के छः छः भेद । (लू० ५०१-१०) छः बाह्य तप । छः आभ्यन्तर तप । छः विवाद । छः क्षुद्र प्राणी । छः गोचरी । छः अपक्रान्त महानरक। ब्रह्मलोक में छः पाथड़े । चन्द्र के साथ रहने वाले छः नक्षत्र । अभिचन्द्र कुलकर की अवगाहना छः सौ धनुष । भरत चक्रवर्ती का राज्यकाल छः लाख
| भगवान् पार्श्वनाथ की वादि परिषत् छः सौ । वासुपूज्य भगवान् छः सौ पुरुषों के साथ दीक्षित हुए। भगवान् चन्द्रप्रभ छः मास तक छनस्थ रहे । तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा में छः प्रसंयम तथा अहिंसा में छः संयम । (सू० ५११-५२१)
छः कर्मभूमियाँ । छः वास । छः वर्षधर पर्वत । छः कूट । छः महाद्रह और वहां रहने वाले देव । छः महानदियां । छः अन्तरनदियाँ । छः अकर्मभूमियाँ । छः ऋतु। न्यून रोत्रि तथा अधिक रात्रि वाले छः पर्व । छः अर्थावग्रह । छः प्रकार का अवधिज्ञान | साधु साध्वियों के लिए नहीं बोलने योग्य छः कुवचन । छः कल्पप्रस्तार । छः कल्पपरिमन्धु । छः कन्पस्थिति | भगवान् महावीर की दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष छट्ट भक्त (बेले) के बाद हुए। सनत्कुमारं तथा माहेन्द्रकल्प में विमानों की ऊंचाई छः सौ धनुष तथा शरीर की अवगाहना छः रति । (सू० ५२२-५३२ ) ।
छः भोजन परिणाम । छः विप परिणाम । छः प्रश्न । उत्कृष्ट छः छः मास विरह वाले स्थान । छः प्रकार का आयुबन्ध । छः भाव । छः प्रतिक्रमस्य । छः तारों वाले नक्षत्र । छः कर्मबन्ध । ( ५३३ -४०) सप्तम स्थानक
सात गणापक्रमण । सात विभंगज्ञान । सात योनिसंग्रह | सात अंडज आदि की गतागत। श्राचार्य और उपाध्याय के सात संग्रहस्थान । सात असंग्रह स्थान । सात पिंडैषणाएं । सात पायैषयाए । सात श्रवग्रहप्रतिमाए । सप्त सप्तिका । सात महाध्ययन ।