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१०६ । श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पाँच अनन्तक । पाँच ज्ञान । पाँच ज्ञानावरणीय। पाँच स्वाध्याय । पाँच प्रत्याख्यान । पाँच प्रविक्रमण । सूत्र वाचन के पाँच प्रयोजन। सूत्र सिखाने के पाँच प्रयोजना पाँच वर्णों वाले पाँच विमान | पाँच सौ योजन अवगाहना । पाँच रनि की उत्कृष्ट प्रवगाहना बन्धयोग्य पंचवर्ण पुद्गल । गंगा, सिन्धु, रक्षा और रक्षवती महानदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ । कुमारावस्था में दीक्षित पाँच तीर्थकर । चमरचंचा की पाँच सभाएं । इन्द्रस्थान की पाँच सभाएं। पनि तारों वाले नक्षत्र । वन्ध योग्य पाँच पुद्गल । (४६१-७४)
छठा स्थानक गण धारण करने वाले के छःगुण । साधु द्वारा सोध्नी के ग्रहण, अवलम्बन आदि के कारण। साधु साध्वी के मृत कलेवर सम्बन्धी कार्य करने के कारण छिमस्थ द्वारा अज्ञेय तथा भद्रष्टव्य छपाते। छ. अशक्य । छाजीवनिकाया छ तारों वाले ग्रहाका संसारी जीव। छ सर्वजीव । छः तृण वनस्पतिकाय । छ दुर्लभ । इन्द्रियार्थे । छः संवरछा असंवर । सुखाः प्रायश्चित्ता (सू०४७५-४८४)
छ: मनुष्य छः ऋद्धिमान मनुष्य । छः ऋद्धि रहित मनुष्य । छः उत्सर्पिणी । छ। अवसर्पिणी । सुषम सुषमा में अवगाहना और आयु । देवकुरु और उत्तरकुरु में अवगाहना तथा प्रायु । कसंहनन । संस्थान । सकषायी के लिए अशुभ तथा अकषायी के लिए शुभ छ बातें जात्यार्या छकुलार्य छ: लोकस्थिति।छः दिशाएं। छाहार करने तथा छोड़ने के स्थान । (सूत्र ४४०-५००)
उन्मादप्राप्ति के छ कारण। छ: प्रमाद। छः प्रमाद प्रतिलेखना।
अप्रमाद प्रतिलेखना। लेश्या। छ: अप्रमहिषियाँ। छ: पन्योपम की स्थिति छः दिक्कुमारियाँ । घरणेन्द्र की छः अमहिषियाँ । भूतानन्द श्रादि की छः अग्रमहिवियाँ । छः हजार सामानिकों वाले