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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग १०५ कारण । पाँच प्रतिसंलीन । पाँच अप्रतिसंलीन । पाँच संवर। पाँच असंवर । पाँच संयम । पाँच एकेन्द्रिय जीवों का संयम और असंयम। पंचेन्द्रियों की रक्षा से पाँच संयम तथा हिंसा से पाँच असंयम । सर्व प्राण भृत जीव सच विषयक पांच संयम और. पाँच असंयम। पॉच तृणवनस्पतिकाय । पाँच आचार । पाँच आचार-प्रकल्प । पाँच आरोपणा । पाँच वक्षस्कार पर्वत । पाँच महाहद । अढाई द्वीप में पाँच क्षेत्र । भगवान् ऋषभदेव की अवगाहना पाँच सौ धनुष की। इसी तरह भरत चक्रवर्ती, वाहुवली अनगार, वाशी और सुन्दरी की भी पाँच पाँच सौ धनुष की अवगाहना।
जागने के पाँच कारण । साधु द्वारा साध्वी के छुए जाने के पाँच विशेष कारण |प्राचार्य और उपाध्याय के पॉच अतिशय । पॉच गणापक्रमण । पाँच ऋद्धि वाले मनुष्य । (सू०४२६-४४०)
(३) उद्देशक-पाँच अस्तिकाय । प्रत्येक के पाँच मेदा पाँच गति। पाँच इन्द्रियार्थी पाँच मुण्डित (दो प्रकार से)। तीनों लोकों में पाँच पादर। पाँच वादर तेउकाय । पाँच चादर वायुकाय । पाँच अचित्त वायुकायापाँच निर्ग्रन्थ । प्रत्येक के पाँच र मेदा पाँच वस्त्र।पाँचरजोहरण।धर्मात्मा के पाँच बालम्बन स्थान । पाँच निधि । पाँच शौच । छमस्य द्वारा पूर्ण रूप से देखने तथा जानने के योग्य पाँच घातें।
पाँच महानरक । पाँच महाविमान । पाँच पुरुष, पाँच मत्स्य । पाँच भिक्षुक । पाँच वनीपक । अचेल पाँच पातों से प्रशंसनीय होता है । पाँच उत्कट । पॉच समितियाँ । पाँच संसारी जीव । : एकेन्द्रिय आदि जीवों की पाँच गतागत । पाँच सर्वजीव । उत्कृष्ट पाँच वर्ष की स्थिति वाले धान्य । पाँच संवत्सर । युगसंवत्सर, प्रमाणसंवत्सर और लक्षणसंवत्सर के पाँच पाँच मेद । (४४१-६०)
पाँच निर्याणमार्ग। पाँच छेदन। पांच भानन्तर्य । पाँच अनन्त ।