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- श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
१०४ नारकी शरीरों के पाँचवर्ण तथा ५ रसापांच शरीराप्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन में पांच दुर्गम तथा दूसरे तीर्थङ्करों के शासन में पाँच सुगम बोल । भगवान द्वारा कहे हुए श्राचरणीय पाँच गोल । पांच महानिर्जरा के कारण । (२० ३६५-३६७)।
सम्भोगी को विसम्मोगी करने तथा पारचित प्रायश्चित्त देने केपांच कारण । गण में विग्रह तथा अवग्रह के पाँच स्थान । पांच निषद्याएं । पांच आर्जव स्थान | पांच ज्योतिषी । पांच देव । पांच परिचारणा | असुरेन्द्र तथा वलीन्द्र की पांच अग्रमहिषियो। पांच चमरेन्द्र, वलीन्द्र, धरणेन्द्र, भूतानन्द नाम के नाग कुमारेन्द्र, वेणु देव नामक सुवर्णेन्द्र,शक्रन्द्र, ईशानेन्द्र तथा दूसरे इन्द्रों की सेनाएं। पांच पन्योपम की स्थिति वाले देव । (सूत्र ३९८-४०५)
पांच प्रतिघातापांच आजीवकः।पांच राजचिह्न । छमस्थ तथा केवली द्वारा परीषह सहन करने के पांच प्रकार | पांच हेतु तथा अहेतु केवली के पांच अनुत्तर । चौदह तीर्थंकरों के एक एक नक्षत्र में पांचों कल्याणक । (सूत्र ४०६-४११) __ साधु द्वारा पार करने के लिए वर्जित पाँच नदियाँ। ऐसी नदियों को भी पार करने के विशेष पाँच कारण । साधु तथा साध्वी के लिए चतुर्मास में विहार करने के पांच कारण । पाँच अनुद्घातिक । साधु द्वारा राजा के अन्तःपुर में प्रवेश के पांच कारण । (सू०४१२-१५)
पुरुषसंयोग के विना गर्भधारण के पॉच कारण । साधु साध्वियों के एक ही मकान आदि में ठहरने के पाँच कारण । पाँच भानव द्वार। पांच संवर द्वार। पाँचदण्ड । क्रिया के पांच भेद। पाँच परिज्ञा। पाँच व्यवहार । संयत मनुष्य के सोने पर पॉच जागृत और जागने पर पाँच सुप्त तथा असंयत मनुष्य के इससे उल्टे । कर्मरज संग्रह तथा विनाश के पाँचकारण। पाँच उपघाता पॉच विशुद्धि।.४१६-२५)
दर्लभ वोधि कर्म बाँधने के पाँच कारण। सुलभवोधि के पांच