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श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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चार प्रकार की बुद्धि । चार प्रकार की मति । चार प्रकार के संसारी जीव । चार प्रकार के सब जीव तीन अपेक्षाओं से । (सूत्र ३६२
३६५)
___ चार अपेक्षाओं से चार प्रकार के पुरुष । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च
और मनुष्यों की गति तथा आगति । बेइन्द्रिय जीवों के अनारम्म में चार प्रकार का संयम और आरम्भ में असंयम । सम्यग्दृष्टि नारकी आदि जीवों की चार क्रियाएं । चार कारणों से गुण नष्ट होते हैं और चार कारणों से उद्दीप्त होते हैं। नारकी श्रादि शरीरोत्पत्ति के चार कारण । (सूत्र ३६६-३७१) ।
चार धर्मद्वार । नरक आदि के योग्य कर्म चाँधने के चार चार कारण । चार चार प्रकार के वाद्य, नाट्य, गेय, मल्ल, अलङ्कार और अभिनय । चार वर्ण वाले विमान । चार रनियों की उत्कृष्ट अवगाहना । (सूत्र ३७२-३७५)
भावी वर्षा की सूचक्र चार बातें।चार मानुपीगर्भ । उत्पाद पूर्व की चार मल वस्तुएं । चार प्रकार का काव्य । नारकी जीवों के चार समुद्घात । (सूत्र ३७६-३८०)
अरिष्टनेमि भगवान् के शासन में चार सौ पूर्वधर थे। भगवान महावीर के शासन में चार सौ वादियों की सम्पदाथी। अर्द्धचन्द्राकार वाले विमान । पूर्णचन्द्राकार विमान । चार समुद्र प्रत्येक प्रान् भिन्न भिन्न रस वाले। चार श्रावर्त । चार तारों वाले नक्षत्र | चार स्थानों से जोव पुद्गलों का चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा करता है। चार प्रदेशों वाले पुद्गल । (सू० ३८१-३८८)
पंचम स्थानक-पाँच महाव्रत । पाँच अणुव्रत । पाँच वर्ण : पाँच ग्स। पाँच कामगुण । पाँच प्रासक्ति, सुगति, दुर्गति आदि के कारण। पाँच पडिमाएं । पाँच स्थावरकाय । पहले पहल अवधिदर्शन उन्पन्न होने पर चोम के पांच कारण । (सूत्र ३८९-३९४)