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श्री सेठिया जेन प्रन्थमाला
लोक में प्रकाश करने वाले चार पदार्थ । (मत्र ३३८) (४) उद्देश-चार प्रसर्पक । चारों गतियों में श्राहार । चार श्राशीविष । चार प्रकार की व्याधि । चार प्रकार की चिकित्सा। चार प्रकार के चिकित्सक । तीन अपेक्षाओं से चार चार प्रकार के पुरुष । चार प्रकार के व्रण (दो अपेक्षाओं से) और उनके समान पुरुष । छः प्रकार से चार चार प्रकार के पुरुष । चार प्रकार की वृक्षविकुर्वणा । चार प्रकार के वादी नैरयिक आदि दण्डकों में। (सू० ३३९-४५)
सात अपेक्षाओं से चार प्रकार के मेघ और उनकी उपमा वाले पुरुष, माता पिता तथा राजा | चार प्रकार के मेघ । चार करण्डक
और उनके समान आचार्य ।दो तरह से चार प्रकार के वृक्ष और तत्समान भाचार्य । चार प्रकार के मत्स्य और उनके समान भिक्षुक। तीन अपेक्षाओं से चार प्रकार के गोले और तत्समान पुरुष । चार प्रकार के पत्ते और उनके समान पुरुष । चार प्रकार की चटाइयां
और वत्समान पुरुष। चार प्रकार के चौपाएं। चार प्रकार के पक्षी। चार प्रकार के क्षुद्र प्राणी । चार प्रकार के पक्षी और उनके समान मिचुका पाँच अपेक्षाओं से चार प्रकार के पुरुष (०३४६-५२) __ सात अपेक्षाओं से चार प्रकार का संवास (मैथुन) । चार अपध्वंसापासुरी, भाभियोगिकी, सम्मोहनी और कैल्विषिकी प्रवृत्तियों के चार चार कारण । पाठ प्रकार से प्रव्रज्या के चार चार मेद । (सत्र ३५३-३५५) .
चार संज्ञाएं और उनके चार चार कारण । चार काम । चार प्रकार के जल और समुद्र तथा उनके समान पुरुष। चार प्रकार के तैराक । सात अपेक्षाओं से चार चार प्रकार के कुम्म और उनके समान पुरुष तथा चारित्र । चार उपसर्ग तथा प्रत्येक के चार चार भेद । (सूत्र ३५६-३६१) 'तीन अपेक्षाओं से चार प्रकार के कर्म । चार प्रकार का संघ।