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श्री जैन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग १०१ प्रकार के श्रावक । चार प्रकार की श्राविकाएं। (सत्र ३१५-३२०)।
चार प्रकार के श्रावक (दो अपेक्षाओं से) श्रमण भगवान महावीर के श्रमणोपासकों की अरुणाभ नामक विमान में चार पल्योपम स्थिति है। नया उत्पन्न हुआ देव मनुष्यलोक में आने की इच्छा होने पर भी चार कारणों से नहीं आ सकता और चार कारणों से श्रा सकता है। चार कारणों से लोक में अन्धकार हो जाता है तथा चार कारणों से प्रकाश होता है, इसी प्रकार दिव्यान्धकार, दिव्योद्योत, दिव्यसनिपात, दिव्योत्कलिका और देवकहकहा रूप पाच चोल जानने चाहिएं। चार कारणों से देव मनुष्यलोक में आते हैं। (सूत्र ३२१-३२४)
चार दुःखशय्याएं तथा चार सुखशय्याएं । चार अवाचनीय । चार प्रकार के पुरुष। तेरह अपेक्षाओं से चार प्रकार के पुरुष । चार प्रकार के घोड़े (सात अपेक्षाओं से) तथा उनकी उपमा वाले पुरुष । चार प्रकार के पुरुष । चार लोक समान हैं। चार लोक सभी दिशा तथा विदिशाओं में समान हैं। ऊर्ध्व और अधोलोक में दो शरीर वाले चार चार जीव । चार प्रकार के पुरुष । चार शय्या पडिमाएं । चार वस्त्र पडिमाएं । चार पात्र पडिमाएं । चार स्थान पडिमाएं। चार शरीर जीव से स्पृष्ट है। लोक चार अस्तिकायों से स्पृष्ट है। उत्पन्न होते हुए चार चादरकायों से लोक स्पृष्ट है। चार के प्रदेश तुल्य हैं। चार कायों का शरीर आँखों से नहीं दीखता । चार इन्द्रियाँ पदार्थ को छूकर जानती हैं। चार कारणों से जीव और पुद्गल लोक के बाहर नहीं जा सकते । (सूत्र ३२५-३३७)
चार दृष्टान्त प्रत्येक के चार भेद। हेतु के चार भेद (तीन अपेक्षाओं से) चार प्रकार का गणित । अधोलोक में अन्धकार करने वाले , चार पदार्थ । ति, लोक में प्रकाश करने वाले चार पदार्थ । ऊर्ध्व