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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भूमियाँ । मेरु के उत्तर में तीन कर्मभूमियाँ । उत्तर में तीन वास । दक्षिण में तीन वास । उत्तर और दक्षिण में तीन तीन वर्षधर पर्वत । दक्षिण तथा उत्तर में तीन तीन महाद्रह तथा वहाँ रहने वाले देव । दक्षिणी तथा उत्तरी महाद्रह से निकलने वाली नदियाँ तथा उनकी उपनदियाँ । (सू० १६१ - १६७) ।
एक देश से भूचाल के तीन कारण । सर्व देश से भूचाल के तीन कारण । किल्विषी देवों के तीन भेद तथा उनके निवास । तीन पल्योपम स्थिति वाले देव तथा देवियाँ । तीन प्रकार का प्रायश्चित | तीन अनुद्घातिम। तीन पारंचित। तीन अनवस्थाप्य । दीक्षा, शिक्षा आदि के योग्य तीन । (सू० १६८ - २०३) । तीन मांडलिक पर्वत । तीन महाति महालय । तीन कल्पस्थिति (दो अपेक्षाओं से ) । तीन शरीर वाले जीव । तीन गुरुप्रत्यनीक । तीन गतिप्रत्यनीक । तीन समूह प्रत्यनीक । तीन अनुकम्पा प्रत्यनीक । तीन भावप्रत्यनीक । तीन भुतप्रत्यनीक । तीन पिता के अङ्ग । तीन माता के अङ्ग । (सू० २०४ - २०६ ) ।
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साधु के लिए महानिर्जरा के तीन स्थान | श्रावक के लिए महा निर्जरा के तीन स्थान । तीन पुद्गल प्रतिघात । तीन चक्षु | तीन अभिसमागम । तीन ऋद्धि । तीनों ऋद्धियों के दो अपेक्षाओं से तीन तीन भेद । तीन गारव । तीन करण । तीन धर्म । तीन 1 I व्यावृति | तीन अन्त । तीन जिन । तीन केवली । तीन अरिहन्त । तीन दुर्गान्धि वाली लेश्याएं । तीन सुगन्धि वाली लेश्याएं । इसी तरह दुर्गति और सुगति में ले जाने वाली, संक्लिष्ट और असंक्लिष्ट,
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मनोज्ञ और मनोज्ञ, अविशुद्ध और विशुद्ध, अप्रशस्त और प्रशस्त, शीतरूक्ष और स्निग्धोष्ण तीन तीन लेश्याएं । तीन प्रकार का मरण | तीन प्रकार का बालमरण। तीन प्रकार का पण्डित - मरण | तीन प्रकार का बालपण्डितमरण ( सू० २१०-२२२ ) ।