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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
आत्मा के राग द्वेष आदि पाप या संसार समुद्र से बचने के तीन स्थान-(१)जव आत्मा किसी बुरे रास्ते पर जा रहा हो उस समय किसी धार्मिक व्यक्ति द्वारा उपदेश मिलने पर आत्मा की रक्षा हो जाती है अर्थात् वह बुरे मार्ग में जाने से बच जाता है । (२) अपनी वाणी को वश में रखने वाला अर्थात् मौन रहने वाला या समय पर हित, मित और प्रिय वचन बोलने वाला आत्मा की रक्षा करता है। (३) किसी प्रकार का विवाद खड़ा होने पर अगर शान्त रहने की शक्ति न हो, उपेक्षा करने की सामर्थ्य न रहे तो उस स्थान से उठ कर किसी एकान्त स्थान में चले जाने से आत्मरक्षा होती है, अथवा हमेशा एकान्त सेवन करने वाला आत्मरक्षा करता है। ग्लायमान साधु शरीर रक्षा के लिए तीन प्रकार से पेय वस्तुएं ग्रहण करे। (सू० १७२)।
संभोगी को विसंभोगी करने के तीन कारण । तीन अनुज्ञा । तीन समनुज्ञा । तीन विजहणा अर्थात् त्याग। (सू० १७३-१७४)
तीन वचन । तीन अवचन । तीन प्रकार का मन । तीन प्रकार का अमन । अल्पवृष्टि के तीन कारण । सुवृष्टि के तीन कारण। देव द्वारा मनुष्य लोक में न आ सकने के तीन कारण । देव द्वारा मनुष्य लोक में आने के तीन कारण । (सू० १७५-१७७)
देव तीन बातों की.अभिलाषा करता है। तीन कारणों से देव । पश्चाचाप करता है। तीन कारणों से देव अपने च्यवन को जान । जाता है। तीन वातों से देव उद्विग्न होता है । विमानों के तीन संस्थान । विमानों के तीन आधार। तीन प्रकार के विमान । (५० १७८-८०)
तीन प्रकार के नारकी आदि दण्डक । तीन दुर्गतियाँ । तीन सुगतियाँ । तीन दुर्गत । तीन सुगत । चउत्थ, छट्ट और अट्ठम भत्त करने वाले साधु को कल्पनीय तीन पेय द्रव्य । तीन उपहता तीन अवगृहीत, तीन ऊनोदरी । उपकरणोनोदरी के तीन भेद । साधु,