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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला माता पिता, सेठ, गुरु तीनों के द्वारा किए हुए उपकार का बदला नहीं चुकाया जा सकता । तीन स्थानों पर रहा हुआ अनगार संसार समुद्र को पार करता है। तीन प्रकार की उत्सपिणी । तीन प्रकार की अवसर्पिणी। तीन प्रकार से पुद्गल विचलित होता है। तीन प्रकार की उपधि । तीन प्रकार का परिग्रह (दो प्रकार से)। (सूत्र १३५-१३८)
तीन प्रणिधान । तीन सुप्रणिधान । तीन दुष्प्रणिधान । तीन योनि (चार प्रकार से)। तीन गर्मज उत्तम पुरुष । तृणवनस्पतिकाय के तीन भेद । भारतवर्ष में तीन तीर्थ मागध, वरदाम, प्रभास । इसी प्रकार धातकीखंड तथा पुष्कराई के क्षेत्रों में जानना चाहिए। (सूत्र १३६-१४२)
तीन सागरोपम स्थिति वाले आरे। तीन पन्योपम श्रायु तथा तीन कोस की अवगाहना वाले मनुष्य । तीन वंश । तीन उत्तम पुरुष । तीन अनपवयं तथा मध्यम आयु वाले।
तीन दिन अनिकाय के जीवों की आयु। तीन वर्ष की आयु वाले अनाज के जीव । तीन पल्योपम या तीन सागरोपम आयु वाले देव तथा नारकी जीव । उष्ण वेदना वाले पहले तीन नरक । अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप और सर्वार्थ सिद्ध विमान लम्बाई चौड़ाई में समान हैं। इसी तरह सीमन्तक नरक, अढाई द्वीप और सिद्धशिला मी लम्बाई चौड़ाई में समान हैं। खाभाविक रस वाले पानी से युक्त तीन समुद्र कालोद, पुष्करोद, खयंभूरमण अधिक मत्स्य, कच्छपादि वाले तीन समुद्र-लवण, कालोद, स्वयंभूरमण । (२०१४३-१४६)
सातवीं नरक में उत्पन होने वाले तीन । सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होने वाले तीन । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प में विमानों के तीन रंग। प्राणत, प्राणत, पारण और अच्युत कन्पों में देवों की भवधारणी अवगाहना तीन रलियाँ। तीनमत्र-दीपसागर पपल