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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
पिहितागामपथ ।
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मूर्छा के दो भेद — प्रेमप्रत्यया, द्वेषप्रत्यया । प्रेमप्रत्यया के दो भेद - माया, लोभ । द्वेषप्रत्यया के दो भेद-क्रोध, मान । दो प्रकार की आराधना -- धार्मिकाराधना, केवलिकाराधेनां । धार्मिंकाराधना के दो भेद - श्र तधर्माराधना, चारित्रधर्माराधना । केवलिकाराधना के दो भेद अन्तक्रिया, कल्पविमानोपपत्तिका | दो तीर्थङ्करों का वर्ण नील उत्पल के समान है - मुनिसुव्रत, श्ररिष्टनेमि | दो तीर्थरों का रंग प्रियंगु के समान श्याम है— मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ दो तीर्थङ्कर पद्म के समान गौर हैं- पद्मप्रभ, वासुपूज्य । दो तीर्थकर चन्द्र के समान गौर हैं - चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त ।
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सर्वप्रवाद पूर्व में दो वस्तु हैं। दो भाद्रपदा - पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा | दो फाल्गुनी — पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी । मनुष्य क्षेत्र में दो समुद्र हैं- लवण, कालोद | दो चक्रवर्ती सातवीं नरक में उत्पन्न हुए- सुभूम, ब्रह्मदत्त ।
दो पल्योपम या सागरोपम स्थिति वाले देव । दो कल्पों में कल्पस्त्रियाँ होती हैं— सौधर्म, ईशान । दो कल्पों में तेजोलेश्या वाले देव होते हैं - सौधर्म, ईशान । इन्हीं दो कल्पों में देव काय प्रवीचार वाले होते हैं। दो कल्पों में देव स्पर्शप्रवीचार वाले होते हैं— सनत्कुमार, माहेन्द्र । दो कल्पों में रूपशवीचार वाले होते हैं - ब्रह्मलोक, लान्तक । दो कल्पों में शब्दप्रवीचार वाले होते हैं- महाशुक्र, सहस्रार । दो मन प्रवीचार वाले होते हैं- प्राणत, अच्युत । कर्मों के उपचय, I वन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के दो स्थान नस, स्थावर । द्विप्रादेशिक, द्विप्रदेशावगांढ - जांव द्विगुण रूक्ष पुद्गल अनन्त हैं। तीसरा अध्ययन (त्रिस्थानक ) .
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(१) उद्देश—तीन इन्द्र —नामेन्द्र, स्थापनेंन्द्र, द्रव्येन्द्र, अथवा ज्ञानेन्द्र दर्शनेन्द्र, चारित्रेन्द्र, अथवा देवेन्द्र, असुरेन्द्र, मनुष्येन्द्र | तीन