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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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स्वरूप
क्रोध केदो मेद-आत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित । चौवीस दण्डकों में कोपके इसी प्रकार दोदो भेद । मान,माया आदि मिथ्यादर्शन शल्य तक सभी के ऊपर लिखे दो दो मेद जानने चाहिए। संसारी जीवों के दो भेद-त्रस, स्थावर । सब जीवों के दो मेद-सिद्ध, प्रसिद्ध । सेन्द्रिय, अनिन्द्रिय | सकाय, अकाय । सयोग, अयोग । सवेद, अवेद । सकपाय, अकगाय । सलेश्य अलेश्य । सज्ञान, अज्ञान । सोपयोग, निरुपयोग। साहार, निराहार । भाषक, अमापक । चरमशरीरी, अचरम शरीरी । सशरीर, अशरीर ।
दो प्रकार का अशुभ मरण-- वलन्मरण, वशार्गमरण । इसी तरह निदानमरण, तद्वमरण, अथवा गिरिपतन, तरुपतन । जलप्रवेश ज्वलनप्रवेश । विपमवण, शस्त्रावपातन । दो प्रकार का मरण अशुभ होने पर भी कारणविशेष होने पर निषिद्ध नहीं है--वैहायस, गृधूस्पृष्ट । दो प्रकार का प्रशस्त मरण-पादपोपगमन, मक्कप्रत्याख्यान । पादपोपगमन के दो भेद-नीहारिम अनीहारिम । भक्तप्रत्याख्यान के दो भेद-नीहारिम, अनीहारिमं ।
लोक क्या है ? जीव और अजीवा लोक में अनन्त और शाश्वत क्या है ? जीव और अजीव । बोधि के दो भेद-ज्ञानवोधि, दर्शन पोधि । दो प्रकार के बुद्ध-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध । इसी प्रकार मोह
और मूढ के भी दो दो मेद हैं। ____ ज्ञानावरणीयकर्म के दो मेद-- देशज्ञानावरणीय, सर्वज्ञानावररणीय । इसी प्रकार दर्शनावरणीय के भी दो मेद । वेदनीय के दो भेद-सातावेदनीय, असावावेदनीय । मोहनीय के दो भेद-दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय । आयु के दो भेद-श्रद्धायु (कालाय), भवायु। नाम के दो मेद-शुभनाम, अशुभनाम | गोत्र के दो भेद-- उपगोत्र, नीचगोत्र । अन्तराय के दो भेद-प्रत्युत्पन्नविनाशी,