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श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला
इन्द्र- भीम, महाभीम। किमरों के दो इन्द्र-किनर, किम्पुरुष । किम्पुरुषों के दो इन्द्र-सत्पुरुष, महापुरुष। महोरगों के दो इन्द्रअतिकाय, महाकाय । गन्धवों के दो इन्द्र-गीतरति, गीतयशा । अन्नपाणकों के दो इन्द्र-सन्निधि, सामान्य । पानपणिकों के दो इन्द्र-धाता, विधाता । ऋषिवादियों के दो इन्द्र-ऋषि, ऋषिपालक । भूतवादियों के दो इन्द्र-ईश्वर, महेश्वर । कन्द नामक देवों के दो इन्द्र-सुवत्स, विशाल । महाकन्द देवों के दो इन्द्र--हास्य, हास्यरति । कुहएड देवों के दो इन्द्र-श्वेत, महाश्वेत । प्रेतों के दो इन्द्र-प्रेत, प्रेतपति। ज्योतिषी देवों के दो इन्द्र-चन्द्र, सूर्य सौधर्म और ईशानकल्प में दो इन्द्र-शक्र, ईशान । इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में दो इन्द्र- सनत्कुमार, माहेन्द्र । ब्रह्मदेवलोक और लान्तककल्प में दो इन्द्र-ब्रह्म, लान्तक । महाशुक्र, और सहस्रार कल्प में दो इन्द्र-महाशुक्र, सहस्रार । श्रानत, प्राणत और पारण, अच्युत कल्पों में दो इन्द्र-प्राणत, अच्युत । महाशुक्र और सहस्रारकल्प में विमानों के दो रंग है-पीत, श्वेत । अवेयक देवों की ऊँचाई दो रलियाँ होती हैं।
। द्वितीय स्थान (४)उद्देश-समय से लेकर सागरोपम तक-काल, ग्राम, नगर, नियम, राजधानी आदि निवासस्थान, छाया, धूप, प्रकाश, अन्धकार प्रादि सब जीव तथा अजीव दोनों कहे जाते हैं। . दो राशि-जीवराशि, अजीवराशि । शरीर से निकलते समय आत्मा दो प्रकार से शरीर को छूता है- देश से, सर्वरूप से । इसी तरह आत्मा का शरीर में स्फुरण, कोटन, संर्वतन या निर्वर्तन दो प्रकार से होता है।
दो स्थानों से आत्मा को केवलिप्ररूपित धर्म की यावत् मनःपर्णवज्ञान की प्राप्ति होती है-क्षय, क्षयोपशम । .. काल की दो उपमाएं-पल्योपम, सागरोपम । इन दोनों का ।