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श्री जैन सिद्धान्त बोलसंग्रह, चौथा भाग
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स्थिति के दो स्थान-मनुष्य, पंचेन्द्रिय तिर्यश्च । भवस्थिति के दो स्थान-देव, नारकी। आयु के दो भेद-श्रद्धायु, भवायु । अद्धायु के दो स्थान-मनुष्य, पंचेन्द्रिय तिर्यश्च । भवायु के दो स्थान-देव, नारकी। कर्म के दो भेद-प्रदेशकम, अनुमावकर्म । दो गति वाले जीव पूरी आयु प्राप्त किए बिना नहीं मरते-देव, नारकी । दो गतियों में आयु का अपवर्तन होता है अर्थात् वीच में भी टूट जाती है यानी अकाल में मृत्यु हो जाती है-मनुष्य, पंचेन्द्रिय तिर्यश्च ।
जम्बूद्वीप में क्षेत्र, देव तथा अन्य वस्तुएं।
भरत और ऐरावत में सुषम दुषमा नामक भाग दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। सुपमा आरे में मनुष्यों की अवगाहना दो कोस की होती है और दो पल्योपम की पूर्णायु । इसी तरह दो संख्या वाले वास, क्षेत्र, हद, जीव आदि।।
जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र, दो सूर्य आदि सभी ग्रह, नक्षत्रों के नाम ।
जम्बूद्वीप की वेदिका दो कोस ऊँची है लवणसमुद्र का चक्रवान विष्कम्म दो लाख योजन है। लवण समुद्र की वेदिका दो कोस ऊँची है। धातकी खंड का वर्णन, उसमें पर्वत, हृद, कूट, वास आदि । इसी तरह पुष्कराई का वर्णन। ___ असुरकुमारों के दो इन्द्र-चपर, वली । नागकुमारों के दो इन्द्रधरण, भूतानन्द । सुपर्णकुमारों के दो इन्द्र-वेणुदेव, वेणुदारी । विद्युत्कुमारों के दो इन्द्र-हरि, हरिसह । अग्निकुमारों के दो इन्द्रअग्निशिख, अग्निमाणव ।द्वीपकुमारों के दो इन्द्र-पुण्य, विशिष्ट । उदधिकुमारों के दो इन्द्र-जलकान्त, जलप्रभ । दिशाकुमारों के दो इन्द्र-अमितगति, अमितवाहन । वायुकुमारों के दो इन्द्रवेलम्ब, प्रभजन । स्वनितकुमारों के दो इन्द्र-घोष, महाघोष । पिशाचों के दो इन्द्र-काल, महाकाल । भूतों के दो इन्द्र-मुरूप, प्रतिरूप । यक्षों के दो इन्द्र-पूर्णभद्र, मणिभद्र । राक्षसों के दो