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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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शब्द | शब्द की उत्पत्ति के दो कारण हैं- पुद्गलों का संघात होना, अलग होना ।
पुद्गलों का संघात दो कारण से होता है - स्वयमेव, पर निर्मित से। इन्हीं दो कारणों से पुद्गलों का भेद, पतन, गलन या विनाश होता है । बारह प्रकार से पुद्गलों के दो दो भेद हैं-भेद वाले, विना भेद वाले । नाशस्वभाव वाले, बिना नाशस्वभाव वाले । परमाणु पुद्गल, नो परमाणु पुद्गल । सूक्ष्म, वादर । वद्धपार्श्वस्पृष्ट, नोबद्धपार्श्वस्पृष्ट । पर्यायातीत, अपर्यायातीत । श्रत, अनात्त । इष्ट, अनिष्ट | कान्त, कान्त । प्रिय, अप्रिय । मनोज्ञ, अमनोज्ञ । मणाम, श्रमणाम। शब्द के दो भेद - आत्त, अनात्त । यावत् मणाम, अमणाम । इसी प्रकार रूप, रस, गंध, स्पर्श के भी भेद जानने चाहिए ।
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श्राचार के दो मेद -- ज्ञानाचार, नोज्ञानाचार । नोज्ञानाचार के दो भेद - दर्शनाचार, नोदर्शनाचार । नोदर्शनाचार के दो भेदचारित्राचार, नोचारित्राचार। नोचारित्राचार के दो भेद - तपाचार, वीर्याचार | दो पडिमाएं - समाधिपडिमा, उपधानपडिमा अथवा विवेकपडिमा, व्युत्सर्गपडिमा । अथवा भद्रा, सुभद्रा, अथवा महाभद्रा, सर्वतोभद्रा, अथवा क्षुद्रमोकप्रतिमा, महती - मोकप्रतिमा, . अथवा यवमध्यचन्द्रप्रतिमा, वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा । सामायिक के दो भेद - श्रगार सामायिक, अनगार सामायिक |
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उपपात जन्म के दो स्थान --- देव, नारकी । उद्वर्तना के दो स्थान नारकी, भवनवासी देव । च्यवन के दो स्थान - ज्योतिषी, वैमानिक देव । मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यश्च इन दो स्थानों में पाई जाने वाली १२ बातें - गर्भोत्पत्ति, गर्म में रहते हुए आहार, गर्म में वृद्धि, झास, विकुर्वया, गतिपर्याय, समुद्घात, कालसंयोग, आयाति (गर्म से निकल जाना), मरण, चर्मवाला शरीर और शुक्र शोणित से उत्पत्ति । दो प्रकार की स्थिति -- कायस्थिति, भवस्थिति । का