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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, चौथा भाग ८५ नारकी आदि जीवों की शरीरोत्पत्ति तथा शरीर निवर्तन के दो कारण-राग, द्वेप। दो काय-सकाय, स्थावरकाय त्रसकाय के दो भेद-भत्रसिद्धिक, अभवसिद्धिक । इसी तरह स्थावर काय के भी दो भेद हैं। पूर्व और उत्तर इन दो दिशाओं की तरफ मॅह करके साधु साध्वी को प्रवज्या श्रादि १७ बातें करनी चाहिए। द्वितीय स्थान (२) उद्देश-देव, नारकी आदि २४ दण्डकों के जीव सुख, दुःख आदि भोगते हुए जो पाप करते हैं उसका फल उस गति में भी भोगते हैं, दूसरी गति में भी। नारकी जीव मर कर दो गतियों में उत्पन्न होते हैं तथा दो गतियों से आते हैं-मनुष्य, तिर्यश्च । इसी प्रकार देवों की गतागत भी जाननी चाहिए । पृथ्वीकाय आदि मनुष्य पर्यन्त गतागत । नारकी श्रादि सभी जीवों के १६प्रकार से दो दो मेदादो प्रकार से आत्मा अधोलोक, तिर्यग्लोक, ऊर्ध्व लोक तथा केवलकल्पलोक को जानता देखता है- समुद्घात में, बिना समुद्घात के अथवा विक्रिया से, विना विक्रिया के । दो स्थानों से आत्मा शब्द आदि सुनता है-देश से, सर्वरूप से । इसी तरह रूप, रस और गन्ध के विषय में भी जानना चाहिए। दो स्थानों से आत्मा प्रकाशित होता है- देश से, सर्व से। इसी प्रकार मासित होना आदि नौ वाते हैं। दो स्थानों से शब्द सुनता है-देश से, सर्व से। देवों के दो भेद-एक शरीर वाले और दो शरीर वाले। द्वितीय स्थान (३) उद्देश-शब्द केदो भेद-भाषाशब्द, नोभाषाशब्दामापाशब्द के दो भेद-अक्षरसम्बद्ध, नोअक्षरसम्बद्ध। नोमापाशब्द के दो भेद-पातोयशब्द, नोआतोध शब्द । आतोद्यशब्द के दो भेद- तत, वितत । तत के दो भेद-घन, शुपिर । इसी तरह वितत के दो भेद हैं। नोमातोय शब्द के दो भेद-भूषणशब्द, नोभूषणशब्द। नोभूषणशब्द के दो भेद-तालशब्द, कास्य
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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