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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
सरागसंयम, अप्रथमसमयसूक्ष्मसम्परायसरागसंयम, अथवा चरमसमयः, अचरमसमय०, अथवा संक्लिश्यमान, विशुध्यमान । बादरसम्परायसरागसंयम के दो मेद-प्रथमसमयवादर०, अप्रथम समयवादर०, अथवा चरमसमय०, अचस्मसमय०, अथवा प्रतिपाती, अतिपाती । वीतरागसंयम के दो भेद-उपशान्तकषायवीतरागसंयम, क्षीणकपायवीतरागसंयम । उपशान्तकषायवीतरागसंयम के दो भेद-प्रथमसमयउपशान्त०, अप्रथमसमयउपशान्त अथवा चरमसमय०, अचरमसमय० । क्षीणकषायवीतरागसंयम के दो मेद:- छमस्थक्षीणकषायवीतरागसंयम, केवलिक्षीणकषाय वीतरागसंयम । छमस्थक्षीणकषायवीतरागसंयम के दो मेद-स्वयम्बुद्धछयस्थ, बुद्धबोधितछमस्थ । स्वयम्बुद्धछमस्थ के दो भेद -- प्रथमसमय०, अप्रथमसमय, अथवा चरमसमय, अचरमसमय० । केवलिक्षीणकषायवीतरागसंयम के दो मेद---सयोगिकेवलिक्षीणकषाय, अयोगिकेवलिक्षीणकषाय । सयोगिकवलिक्षीणकषाय
संयम के दो भेद-- प्रथमसमय०, अप्रथमसमय०, अथवा चरम • समय०,अचरमसमय अयोगिकेवलिक्षीणकषायसंयम के दो भेदप्रथमसमय०, अप्रथमसमय०, अथवा चरमसमय०, अचरमसमय।
पृथ्वीकाय के दो मेद-सूक्ष्म, वादर। इसी तरह वनस्पतिकाय तक प्रत्येक के दो मेद है, अथवा पर्याप्तक, अपर्याप्तका परिणत, अपरिणत, गतिसमापन, अगतिसमापन, अनन्तरावगाढ, परम्परावगाढ इस प्रकार भी दो दो भेद हैं। परिणत, अपरिणत आदि मेद द्रव्य के भी हैं। काल के दो भेद- उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी। आकाश के दो मेद-लोकाकाश, अलोकाकाश।
नारकी, देव, पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, तिर्यश्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य वथा विग्रहगति वाले जीवों के दो शरीर-आभ्यन्तर, बाहय । प्रत्येक की व्याख्या।