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श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, चौथा भाग
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ज्ञान-प्रत्यक्ष, परोक्ष । प्रत्यक्ष के दो भेद-केवलज्ञान, नो केवलज्ञान । केवलज्ञान के दो भेद-भवस्थकेवलज्ञान, सिद्धकेवलज्ञान । भवस्थकेवलज्ञान के दो भेद-~सयोगिमवस्थकेवलज्ञान, अयोगि भवस्थकेवलज्ञान । सयोगिभवस्थकेवलज्ञान के दो भेद-प्रथमसमयसयोगिभवस्थकेवलज्ञान, अप्रथमसमयसयोगिमवस्थकेवलज्ञान, अथवा चरमसमय और अचरमसमय के भेद से भी प्रत्येक के दो भेद हैं । अयोगिभवस्थकेवलज्ञान के भी इसी प्रकार भेद हैं। सिद्धकेवलज्ञान के दो भेद-अनन्तरसिद्धकेवलज्ञान, परम्परासिद्धकेवलज्ञान | अनन्तरसिद्धकेवलज्ञान के दो भेद- एकानन्तरसिद्धफेवलज्ञान, अनेकानन्तरसिद्धकेवलज्ञान । परम्परासिद्धकेवलज्ञान के दो भेद है- एकपरम्परासिद्धकेवलज्ञान, अनेकपरम्परासिदूधकेवलज्ञान । नोकेवलज्ञान के दो भेद- अवधिज्ञान, मनम्पर्ययज्ञान | अवधिशान के दो भेद-भवप्रत्यय, क्षयोपशमनिमित्त । भवप्रत्यय वाले जीवों के दो भेद-देव, नारकी। योपशमनिमित्त वालों के दो भेद-मनुष्य, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च । मन पर्यायज्ञान के दो मेद- जुमति, विपुलमति । परोक्षज्ञान के दो भेद-पतिज्ञान, श्रुतज्ञानामतिज्ञान के दो भेद-श्रुवनिम्सृत, अश्रुतनिःसृत । श्रुतनिःसृत के दो भेद-अर्थावग्रह, व्यञ्जनावग्रह । अश्रु तनिःसृत के भी इसी तरह दो भेद हैं । श्रुतज्ञान केदो भेद-अंगप्रविष्ट, अंगवाह्य । अंगवाह्य केदो भेद-आवश्यक, श्रावश्यकव्यतिरिक्त । आवश्यकव्यतिरिक्ष के दो मैद-कालिक, उत्कालिक । धर्म के दो मेदश्रुतधर्म, चारित्रधर्म।श्रुतधर्म के दो भेद-सूत्रतधर्म,अर्थश्रु तधर्म। चारित्रधर्म के दो भेद-आगारचारित्रधर्म, अनागारचारित्रधर्म । संयम के दो भेद-सरागसंयम, चीतरागसंयम | सरागसंयम के दो भेद-सूक्ष्मसम्परायसरागसंयम, वादरसम्परायसरागसंयम । सूक्ष्मसम्परायसरागसंयम के दो मेद- प्रथमसमयसूक्ष्मसम्पराय