SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - बाईसवाँ अध्ययन-परक्रिया। मुनि के शरीर में कोई गृहस्थ कर्म बन्ध करने वाली क्रिया करे तो कैसे वर्तना चाहिए। । तेईसवाँ अध्ययन-अन्योन्यक्रिया। मुनियों को आपस में होने वाली कर्मवन्धन की क्रियाओं में कैसे रहना चाहिए। तीसरी चूलिका चोवीसवाँ अध्ययन-भावना । महावीर प्रभु का चारित्र तथा पाँच महाव्रतों की भावनाएं। पञ्चीसवाँ अध्ययन-विमुक्ति । हित शिक्षा की गाथाएं। (२) सूयगडांग सूत्र दर्शन शास्त्र के विकास में सूयगडांग सूत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका संस्कृत नाम 'सूत्रकृताङ्ग' या 'सूचाकृताङ्ग है। इसमें भगवान महावीर के समय में प्रचलित ३६३ मतों का सूत्ररूप से यो सूचनारूप से निर्देश किया गया है। इसमें दोश्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं और दूसरे में सात । इनमें निम्नलिखित विषयों का वर्णन है प्रथम श्रस्कन्ध- पहला अध्ययन-विमिन्नवादों की चर्चा । (१)उ०-गाथा १--५ वन्ध तथा वन्धकारण। ६-८ भौतिकवादियों का मत । । ब्रह्मवाद । १० एकात्मवाद का खण्डन । १११२ दूसरे भौतिकवादी। १३ प्रक्रियावादी । १४ प्रक्रियावादियों का खण्डन । १५ वैशेषिकमत का प्रारम्भिक रूप । १६ द्रव्यों की नित्यता । १७ बौद्ध । १८ ज्ञानक (जानय)। (२)3०-गा० १-१६ भाग्यवाद और उसका खण्डन । १७ भौतिकवाद । २४ क्रियावाद । २५-२८ बौद्ध । (३)3०-गा०१-४ मुनि के लिए अग्राह्य आहार। ५-१०.पौराणिक । ११-१३ गोशालक के अनुयायी। १४ वैनयिक । (४)3०-- बहुत से प्रचलित मत । उपसंहार।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy