________________
श्री जैन सिद्धा-त गेल संग्रह, चौथा भाग
दूसरा अध्ययन-कर्मनाश। इसके तीन उद्देशे हैं। तीनों में कर्मों को नष्ट करने का उपाय बताया गया है।
तीसरा अध्ययन-मित्रुजीवन के विन। इसमें चार उद्दशे हैं। इनमें दुःखों का वर्णन है। (१)उ०-साधु पर आने वाले कष्ट । (२)उ०-साधु किस तरह गृहस्थ जीवन की ओर आकृष्ट किया जाता है। (३)3०-साधु किस तरह फिसल जाता है। साधु को समान समाचारी वाले रोगी की भोजन आदि से सेवा नहीं करनी चाहिए, इस बात का खण्डन। (४)उ०-विरोधों का परिहार।
चौथा अध्ययन-स्त्रीप्रसंग। इसमें दोउद्देशे हैं और स्त्रीचरित्र का वर्णन है। (१)उ०-त्रियों साधु को कैसे फुसलाती हैं । (२)उ०-बाद में उसके साथ कैसा बर्ताव करती हैं।
पाँचवॉ अध्ययन–पाप का फल । इसमें दो उद्देशे हैं, दोनों में नरक तथा उसके दुःखों का वर्णन है।। ___ छठा अध्ययन-भगवान् महावीर । इसमें भगवान् महावीर की स्तुति है।
सातवाँ अध्ययन-अधर्मियों का वर्णन । पापों का वर्णन। जीव हिंसा का त्याग । यज्ञ तथा अनि में होम आदि कार्यों की व्यर्थता । साधु को स्वार्थी न होना चाहिए।
आठवॉअध्ययन-सच्ची वीरता। कायक्लेश, अकाम निर्जरा ।
नवॉ अध्ययन-धर्म संयम । साधु को किन बातों से अलग हना चाहिए।
दसवाँ अध्ययन,-समाधि । जयणा का स्वरूप । साधु को क्या