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श्री जैन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग
प्रत्येक मध्ययन का नाम, उद्दशे और विषय नीचे लिखेअनुसार है
प्रथम श्रुतस्कन्ध पहला अध्ययन-शस्त्रपरिज्ञा। जीवों की हिंसा के कारण को शस्त्र कहते हैं। इसकेदो भेद हैं-द्रव्यशख और भावशस्त्र । तलवार आदि द्रव्यशस्त्र हैं और अशुभयोग भावशस्त्र हैं। इस अध्ययन में भावशखों की परिक्षा अर्थात् जानकारी है। परिक्षा दो तरह की होती है-ज्ञपरिना अर्थात् अशुभ योग प्रादि कर्मबन्ध के कारणों को जानना । प्रत्याख्यान परिज्ञा अर्थात् समझ कर उनका त्याग करना । पहले अध्ययन में सात उद्देशे हैं। एक अध्ययन में पाए हुए नवीन विषय के प्रारम्भ को उद्दश कहते हैं। (१)उ०-आत्मा तथा कर्मबन्धहेतु विचार। (२)उ०-पृथ्वीकाय की हिंसा का परिहार । दुख के अनुभव के लिए अन्धवधिर का दृष्टान्त । (३)उ०--अकाय की हिंसा का परिहार। (४)उ०-अग्निकाय की हिंसा का परिहार। (१)उ०-वनसतिकाय की हिंसा का परिहार । मनुष्य शरीर की समानता से वनस्पतिकाय में जीवसिद्धि । (६)
उ स जीवों की हिंसा का परिहार [प्रस जीवों की हिंसा
के कारण। ' (७)उ०-वायुकाय की हिंसा का परिहार।
दूसरा अध्ययन-लोक विजय । संसार और उसके कारणों पर विजय प्राप्त करना । इसमें छह उद्देशे हैं। (१)उ०-माता, पिता आदि लोक को जीत कर संयम पालना। (२)उ०-अरति टालकर संयम में दृढ़ रहना। (३)उ०—मान छोड़ना तथा भोगों से विरक्ति । (8)उ०:-भोगों से रोग की उत्पत्ति ।