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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
दिव्य प्रभा, दिव्य छाया, दिव्य कान्ति, दिव्य तेज, दिव्य लेश्या अर्थात् विचार, इन सब के द्वारा वह दसों दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ तरह तरह के नाट्य, गीत और वार्दित्रों के साथ दिव्य भोगों को भोगता है। उसके परिवार के सभी लोग तथा नौकर चाकर उसका सन्मान करते हैं, उसे बहुमूल्य आसन देते हैं । तथा जब वह बोलने के लिए खड़ा होता है तो चार पाँच देव खड़े होकर कहते हैं, देव ! और कहिए, और कहिए ।
जब वह आयु पूर्ण होने पर देवलोक से चवता है तो मनुष्यलोक में ऊँचे तथा सम्पन्न कुलों में पुरुषरूप से उत्पन्न होता है। अच्छे रूपवाला, अच्छे वर्ण वाला, अच्छे गन्धवाला, अच्छे रसवाला, अच्छे स्पर्शवाला, इष्ट, कान्त, मनोज्ञ, मनोहर स्वरवाला तथा आदेय वचनवाला होता है।
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नौकर चाकर तथा घर के सभी लोग उसकी इज्जत करते हैं । इत्यादि सभी बातें आलोचना न करने वाले से उल्टी जानना ।
(ठायांग सुत्र ५६७)
५७८-- माया की
आठ स्थान
बातों के कारण मायावी पुरुष माया करके उसकी आलोयणा नहीं करता, दोष के लिए प्रतिक्रमण नहीं करता आत्मसाक्षी से निन्दा नहीं करता, गुरु के समक्ष आत्मग ( आत्मनिन्दा) नहीं करता, उस दोष से निवृत्त नहीं होता, शुभ विचार रूपी जल के द्वारा अतिचार रूपी कीचड़ को नहीं धोता, दुबारा नहीं करने का निश्चय नहीं करता, दोष के लिए उचित प्रायश्चित नहीं लेता। वे आठ कारण इस प्रकार हैं
(१) वह यह सोचता है जब अपराध मैंने कर लिया तो अब
उस पर पश्चात्ताप क्या करना ?
लोयणा न करने के