________________ मो सेठिया जैन मामाला Stayatrammarrow. 130232-24199-6--2940 ... है। सूची में उसका समय 11 तथा उसे के साथ उपासकदशादिरनारकीका का होना भी बताया गया है। सोसाइटी की प्रति पर फागुनमा गुरुवार सं० 1824 दिया हुया है। इस में कोई टीका भी नहीं है। केवल गुजराती न्या अर्थ है / उस प्रति का प्रथम और अंतिम प. बीच की पुस्तक के स... ल नही खाता / मन्तिम पृष्ठ टीका वाली प्रति का है। सची में दिया गया विवरण इन पलों से मिलता है / इस से मालूम पड़ता है कि सोसाइटी के लिए किसी दूरी प्रति . नकल हुई है। 1117 सम्बत् उस प्रति के लिखने का नहीं किन्तु टीका ने बनाने क. माल पाता है। यह प्रतिबद्धत मन्दर लिखी mi-.. यह प्रति बहुत सुन्दर लिखी हुई है। इसमें 83 पन्ने हैं। प्रत्येत में छ पंक्तियां और प्रत्येक पंक्ति में 28 अक्षर हैं। साथ में टब्बा है। (c) यह प्रति कलकत्ते में एक यती के पास है। इसमें 41 फन्ने हैं। मूल पर बीच में लिखा हुभा है और संस्कृतीका ऊपर तथा नीचे। इसमें सम्वत् 1916 फागुन सुदी 4 दिया हुन्मा है। यह प्रति शुद्ध और किसी विद्वान् द्वारा लिखी हुई मालूम इती. है अन्त में बताया गया है कि इस में 812 श्लोक मूल के और 1.16 टीका के हैं। (D) यह भी उन्हीं यती जी के पास है। इसमें 33 पन्ने हैं। पंक्ति और 48 अक्षर हैं इस पर मिगसर बदी 5, शुक्रवार सम्बत् 1745 दिया हुआ है। इसमें टम्बा है / यह श्री रेनी नगर में लिखी गई है। (E) यह प्रति मुर्शिदाबाद वाले राय धनपतिसिंहजी द्वारा प्रकाशित है। इनके सिवाय श्री अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर, (बीकानेर का प्राचीन पुस्तक भण्डार जो कि पुराने किले में है) में उपासक दशांग की दो प्रतियां हैं। उन दोनों में 'अबस्थिपरिमाहियाणि चेहआई' पाठ है। पुस्तकों का परिचय F. और G. के नाम से नीचे दिया जाता है (F) लाइब्रेरी पुस्तक नं. 6467 (उवासग सूत्र) फन्ने 24, एक पृष्ठ में 13 पंक्तियां, एक पकि में 42 अक्षर, अहमदाबाद अांचल गच्छ श्रीगुडापार्श्वनाथ की प्रति पुस्तक में संवत् नहीं है।चौथे पत्र में नीचे लिखा पाठ है-अन्न उत्यियपरिम्गाहियाई वा चेइयाई। पत्र के बांई तरफ शुद्ध किया हुआ है-अनउत्थियाई वा अमडत्यि यदेवयाई वा ' पुस्तक अधिकतर प्रशुद्ध है / बाद में शुद्ध की गई है श्लोक संख्या 612 दी है। (G) लाइबेरी पुस्तक नं. 1464 (उपासकदशाहत्ति पंचपाठ सह) पत्र 33, श्लोक 6.0, टीका ग्रन्थान 600, प्रत्येक पृष्ठ पर 16 पजिया और प्रत्येक पंक्ति में 32 अक्षर हैं। पत्र पाठवें पंक्ति पहली में नीचे लिखा पाठ है मन उत्थियपरिग्गहियाई पा चेहवाई / यह पुस्तक पडिमात्रा में लिखी गई है और अधिक प्राचीन मालूम पड़ती है। पुस्तक पर सम्बत् नहीं है।