________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला है। इससे अधिक कोई मुख नहीं है। जैसा कि कहा है- . न वि अस्थिमाणुसाणं, तंसोक्खं न विय सव्य देवाएं। जं सिद्धाणं सोमाय; अव्वाबाहं उवगयाणं॥ ___ अर्थात् - जो सुख अव्यावाध स्थान (मोक्ष) को प्राप्त सिद्ध भगवान् को है वह मुख देव या मनुष्य किसी को भी नहीं है। अतः मोक्ष सुख सब मुखों में श्रेष्ठ है और चारित्र मुख (संयम सुख) सर्वोत्कृष्ट मोक्ष सुख का साधक है। इस लिए दूसरे आठ सुखों की अपेक्षा चारित्र सुख श्रेष्ठ है किन्तु मोक्ष सुख तो चारित्र सुख से भी बढ़कर है। अतः सर्व सुखों में मोक्ष सुख ही सर्वोत्कृष्ट एवं परम सुख. है। (ठाणांग, सूत्र 737 ) वन्दे तान् जितमोहसंवमधनान साधृत्तमान् भूयशः। येषां सस्कृपया जिनेन्द्रवचसा विद्योतिकेयं कृतिः॥ सिद्धयङ्काकरवी मिते मृगशिरोजाते सुमासे तिथौ / पञ्चम्यां रविवासरे सुगतिदा पूर्णा वृषोल्लासिनी // अयं श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह नामकः / ग्रन्थो भूयात् सतां प्रीस्यै धर्ममार्गप्रकाशकः / / मोहरहित संयम ही जिनका धन है ऐसे उत्तम साधुओं को मैं वन्दना करता हूँ जिनकी परम कृपा से जिन भगवान् के वचनों को प्रकाशित करने वाली, धर्म का विकास करने वाली तथा सुगति को देने वाली यह कृति मार्गशीर्ष शुक्ला पञ्चमी रविवार सम्बत् 1968 को सम्पूर्ण हुई। धर्म के मार्ग को प्रकाशित करने वाला 'श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह' नामक यह ग्रन्थ सत्पुरुषों के लिए प्रीतिकर हो। // इति श्री जैनसिद्धान्त बोल संग्रहे तृतीयो भागः // // शुभं भूयात् //