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________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला स्वरूप मुझे अमुक वस्तु प्राप्त हो निदान दोष है। (7) संशय (सन्देह)-सामायिक के फल के सम्बन्ध में सन्देह बना संशय नाम का दोष है। जैसे यह सोचना कि मैं जो सामायिक करता हूँ मुझे उसका कोई फल मिलेगा या नहीं ? अथवा मैंने इतनी सामायिकें की हैं फिर भी मुझे कोई फलनहीं मिला आदि सामायिक के फल केसम्बन्ध में सन्देह रखना संशय नाम का दोष है। (8) रोप-(कपाय)- राग द्वेषादि के कारण सामायिक में क्रोध मान माया लोभ करना रोष (कषाय) नाम का दोष है। (6) अविनय-सामायिक के प्रति विनय भाव न रखना अथवा सामायिक में देव, गुरु,धर्म की असातना करना, उनका विनय न करना अविनय नाम का दोष है। (10) अबहुमान- सामायिक के प्रति जो आदरभाव होना चाहिए। आदरभाव के बिना किसी दवाव से या किसी प्रेरणा से वेगारी की तरह सामायिक करना बहुमान नामक दोष है। ___ येदसों दोष मन के द्वारा लगते हैं। इन दस दोषों से बचने पर सामायिक के लिए मन शुद्धि होती है और मन एकाग्र रहता है। (श्रावक के चार शिक्षा व्रत, सामायिक के 32 दोषों में से) ७६५-वचन के दस दोष ___सामायिक में सामायिक को दृषित करने वाले सावध वचन बोलना वचन के दोष कहलाते हैं। वे दस हैंकुवयण सहसाकारे सच्छन्द संखेव कलहं च / विगहा विहासोऽसुद्धं निरवेक्खोमुणमुणा दोसा दस॥ (१)कुवचन- सामायिक में कुत्सित वचन बोलना कुवचन नाम ' का दोष है। (2) सहसाकार- विना विचारे सहसा इस तरह बोलना कि
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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