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. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(५) प्रकुर्वक-आलोचित अपराध का प्रायश्चित्त देकर अतिचारों की शुद्धि कराने में समर्थ। (६) अपरिस्रावी- आलोयणा करने वाले के दोषों को दूसरे के सामने प्रकट नहीं करने वाला। (७) निर्यापक-अशक्ति या और किसी कारण से एक साथ पूरा प्रायश्चित्त लेने में असमर्थ साधु को थोड़ा थोड़ा प्रायश्चित्त देकर निर्वाह करने वाला। (८) अपायदर्शी-आलोचना नहीं लेने में परलोक का भय तथा दूसरे दोष दिखाने वाला। (भग० श० २५ उ० ७) (ठाणांग सूत्र ६०४ ) ५७६- आलोयणा करने वाले के पाठ गुण
आठ बातों से सम्पन्न व्यक्ति अपने दोनों की आलोचना के योग्य होता है।
(१) जातिसम्पन्न (२) कुलसम्पन्न (३) विनयसम्पन्न (४) ज्ञान सम्पन्न (५) दर्शनसन्पन्न (६) चारित्रसम्पन्न (७) शान्त अर्थात् क्षमाशील और (८)दान्त अर्थात् इन्द्रियों का दमन करने वाला।
(ठाणांग सूत्र ६०४) ५७७-माया की आलोयणा के आठ स्थान ___ आठ बातों के कारण मायावी (कपटी) मनुष्य अपने दोष की आलोयणा करता है। (१) 'मायावी इस लोक में निन्दित तथा अपमानित होता है' यह समझकर अपमान तथा निन्दा से बचने के लिये मायावी (कपटी) पुरुष आलोयणा करता है। (२) मायावी का उपपात अर्थात् देवलोक में जन्म भी गर्हित होता है, क्योंकि वह तुच्छ जाति के देवों में उत्पन्न होता है
और सभी उसका अपमान करते हैं। (३) देवलोक से चवने के बाद मनुष्य जन्म भी उसका गर्हित