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________________ 'श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह 417 womanoranara ... देव तो आवासों में रहते हैं। भवनवासी देवों के भवन और श्रावासों में यह फरक होता है - कि भवन तो बाहर से गोल और अन्दर से चतुष्कोण होते हैं। उनके नीचे का भाग कमल की कर्णिका के आकार वाला होता है। शरीरप्रमाण बड़े, मणि तथा रत्नों के दीपकों से चारों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले मंडप आवास कहलाते है। भवन वासी देव भवनों तथा आवासों दोनों में रहते हैं। * ( पनवणा पद 1 ) (ठाणांग, सूत्र 736 ) (भगवती शतक 2 उद्देशा 7 ) ___(जीवाभिगम प्रतिपत्ति 3 उद्देशा 1 सूत्र 115 ) 731- असुरकुमारों के दस अधिपति . असुरकुमार देवों के दस अधिपति हैं। उनके नाम (1) चमरेन्द्र (असुरेन्द्र, असुरराज)(२) सोम (3) यम (4) वरुण (5) वैश्रमण (6) बलि (वैरोचनेन्द्र, वैरोचनराज, बलीन्द्र) (7) सोम (E) यम (8) वरुण (10) वैश्रमण / ___ असुर कुमारों के प्रधान इन्द्र दो हैं। चमरेन्द्र और वलीन्द्र। इन दोनों इन्द्रों के चार दिशाओं में चार चार लोकपाल हैं। पूर्व दिशा में सोम, दक्षिण दिशा में यम, पश्चिम दिशा में वरुण और उत्तर दिशा में वैश्रमण देव / दोनों इन्द्रों के लोकपालों के नाम एक सरीखे हैं। इन लोकपाल देवों की बहुत सी ऋदि है / इन चारों लोकपालों के चार विमान हैं। (1) सन्ध्या प्रम (2) वरशिष्ट (6) स्वयंज्वल (4) बल्गु / इनमें सोम नाम के लोकपाल का सन्ध्याप्रभ विमान दूसरे लोकपालों के विमानों की अपेक्षा बहुत बड़ा है। इसकी अधीनता में अनेक देव रहते हैं और वे सब देव सोम नामक लोकपाल की आज्ञा का पालन करते हैं।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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