________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह का पर्यायों से युक्त जीव अनित्य है, क्योंकि पर्याय बदलते रहते हैं। इस विचार को शाश्वताशाश्वतानुयोग कहते हैं। (8) तथाज्ञानानुयोग- जैसी वस्तु है, उसके वैसे ही ज्ञान वाले अर्थात् सम्यग्दृष्टि जीव को तथाज्ञान कहते हैं / अथवा वस्तु के यथार्थ ज्ञान को तथाज्ञान कहते हैं। इसी विचार को तथाज्ञानानुयोग कहते हैं। जैसे घट को घट रूप से, परिणामी को परिणामी रूप से जानना। (10) अतथाज्ञान-मिथ्यादृष्टि जीव या वस्तु के विपरीतज्ञान को अतथाज्ञान कहते हैं। जैसे- कथञ्चित् नित्यानित्य वस्तुको एकान्त नित्य या एकान्त अनित्य कहना। (ठाणांग, सूत्र 727 ) ७१६-नाम दस प्रकार का वस्तु के संकेत या अभिधान को नाम कहते हैं। इसके दस भेद है-- (1) गौण- जो नाम किसी गुण के कारण पड़ा हो / जैसे-- क्षमा गुण से युक्त होने के कारण साधु क्षमण कहलाते हैं। तपने के कारण सूर्य तपन कहलाता है। जलने के कारण अग्नि ज्वलन कहलाती है। इसी प्रकार दूसरे नाम भी जानने चाहिएं। (2) नोगौण- गुण न होने पर भी जो वस्तु उस गुण वाली कही जाती है, उसे नोगौण कहते हैं। जैसे कुन्त नामक हथियार के न होने पर भी पक्षी को सकुन्त कहा जाता है। मुद् अर्थात् मँग न होने पर भी कपूर वगैरह रखने के डब्बे को समुद्र कहते हैं। मुद्रा अर्थात् अंगूठी न होने पर भी सागर को समुद्र कहा जाता है। लालाओं के न होने पर भी घास विशेष को पलाल* कहा जाता है। इसी प्रकार कुलिका (भीत) न होने पर भी चिड़िया को मउलिया (शकुनिका) कहा जाता है। पल अर्थात् कच्चे *'प्रकृष्टा लालायत्र तत्प्रलालं' इस प्रकार व्युत्पत्ति करने से प्रलाल शब्द बनता है। उसी का प्राकृत में 'पलाल' हो जाता है।