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________________ ३८२ भी सेठिया जैन प्रधमाला ___ इसमें भी श्रावक को 'पारिद्वावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए। (प्र०सारोद्धार ४ प्रत्या० द्वार ) (हरि० प्रावश्यक नियुक्ति गा० १५६५) ७०६- विगय दस ___ शरीर में विकार उत्पन्न करने वाले पदार्थों को विगय (विकृति) कहते हैं। वे दस हैं (१) दूध (२) दही (३) मक्खन (४) घी (५) तेल (६) गुड़ (७) मधु (८) मद्य (शराब) (6) मांस (१०) पकान (मिठाई)। दूध पाँच तरह का होता है गाय का, भैंस का, बकरी का, भेड़ का और ऊँटनी का। दही, घी और मक्खन चार तरह के होते हैं। ऊँटनी के दूध का दही नहीं होता । इसी लिए मक्खन और घी भी नहीं होते। तेल चार तरह का होता है। तिलों का, अलसी का, कुसुम्भ का और सरसों का । ये चारों तेल विगय में गिने जाते हैं। बाकी तेल विगय नहीं माने जाते । लेप करने वाले होते हैं। मद्य दो तरह का होता है- काठ से बनाया हुआ और ईख आदि से तैयार किया हुआ। गुड़ दो तरह का होता है- द्रव अर्थात् पिघला हुआ और पिंड अर्थात् सूखा । मधु (शहद) तीन तरह का होता है- (१) माक्षिक अर्थात् मक्खियों द्वारा इकट्ठा किया हुआ । (२) कौन्तिक- कुंत नाम के जन्तु विशेष द्वारा इकट्ठा किया हुआ। (३) भ्रामर-भ्रमरों द्वारा इकट्ठा किया हुआ। (हरि० आवश्यक नियुक्ति गाथा १६०६ ) ७०७-वेयावच्च (वैयारत्य) दस अपने से बड़े या असमर्थ की सेवा सुश्रूषा करने को वेयावच्च (वैयावृत्य) कहते हैं। इस के दस भेद हैं
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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