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________________ ३८. सी सेठिया जैन ग्रन्थमाला पारिद्वावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह। (ख) तिविहार उपवास करने का पाठ सूरे उग्गए अन्भत्तट्ठ पचक्खाइ तिविहं पि आहार असणं खाइमसाइमं अन्नस्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिहावणियागारेणं महत्तरागारेण सव्वसमाहिवत्तियागारेणं पाणस्स लेवाडेण वा अलेवाडेण वा अच्छेण वा बहलेण वा ससित्थेण वा असित्येण वा वोसिरह।, * 'पारिद्वावणियागारेणं' श्रावक को न बोलना चाहिए। (८) चरिम पञ्चक्वाण- यह दो प्रकार का है । (क) दिवसचरिम- सूर्य अस्त होने से पहिले दूसरे दिन सूर्योदय तक चारों या तीनों आहारों कात्याग करना दिवसचरिम पच्चक्खाण है। (ख) भवचरिम- पञ्चक्खाण करने के समय से लेकर यावज्जीव आहारों का त्याग करना भवचरिम पच्चक्रवाण है। दिवसचरिम (रात्रिचौविहार) करने का पाठ दिवसचरिमं पञ्चक्खाइ चउन्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमसाइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेण सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह। अगर रात को तिविहार पञ्चरखाण करना हो तो 'चउध्विह' की जगह 'तिविह' कहना चाहिए और 'पाणं' न बोलना चाहिए। भवचरिम करने का पाठ भवचरिमंपचक्खाइचउविहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नस्थणाभोगेणं सहसागारेणं वोसिरह। भवचरिम में अपनी इच्छानुसार आगार तथा आहारों की संख्या घटाई बढ़ाई जा सकती है।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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