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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
एगहाण करने का पाठ
एक्कासणं एगद्वाणं पञ्चकखाइ तिविहं पि माहारं असणं वाइमं साइमं अन्नस्थणा भोगेणं सहसागारेलं गुरुअन्भुट्ठाणें पारिट्ठावलियागारें महत्तरागारे सं सव्वसमाहिबत्तियागारें वोसिरह ।
*इस में भी श्रावक को 'पारिद्वावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए। (६) आयंबिल का पञ्चक्स्वाण - एक बार नीरस और विगय रहित आहार करने को आयम्बिल कहते हैं। शास्त्र में इस पच्चखार को चावल, उड़द या सत्तू आदि से करने का विधान है। इसका दूसरा नाम 'गोण्ण' तप है
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आयंबिल करने का पाठ
आयंबिलं पच्चक्खाइ अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं लेवालेयेणं गिहस्थसंसणं उक्खित्तविवेगेण पारिठ्ठाबलियागारें* महत्तरागारेणं सत्र्वसमाहिबत्तियागारणं वोसिरह ।
आयंबिल के आगारों का स्वरूप बोल नं० ५८८ में है । * इस में भी श्रावक को 'पारिहारिणयागारेणं' नहीं बोलना चाहिए । (७) अभत्तह (उपवास) का पच्चक्खाण - यह पच्चक्खाण दो प्रकार का है - (क) सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक चारों आहारों का त्याग चौविहार अभत्तद्व कहलाता है । (ख) पानी का आगार रख कर तीन आहारों का त्याग करना तिविहार भत्त है।
(क) चौविहार उपवास करने का पाठ
सूरे उग्गए अभत्तङ्कं पञ्चकखाइ चउव्विहं पि माहारं असणं पाएं वाइमं साइमं अन्नस्था भोगेणं सहसागारे
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