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________________ १६२ श्री. सेठिया जैन मन्थमाला ( 8 ) चारित्रधर्म- संचित कर्मों को जिन उपायों से रिक्त अर्थात् 'खाली किया जाय उसे चारित्रधर्म कहते हैं । (१०) अस्तिकायधर्म - अस्ति अर्थात् प्रदेशों की काय अर्थात् • राशि को अस्तिकाय कहते हैं। काल के सिवाय पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं। उनके स्वभाव को अस्तिकाय धर्म कहते हैं। जैसे धर्मास्तिकाय का स्वभाव जीव और पुद्गल को गति में सहायता देना है। (ठाणांग, सूत्र ७६० ) नोट- दस धर्मों की विस्तृत व्याख्या 'हितेच्छु श्रावक मण्डल रतलाम (मालवा)' द्वारा प्रकाशित धर्मव्याख्या नामक पुस्तक में है । ६६३ - सम्यक्त्व प्राप्ति के दस बोल . जीव अजीव आदि पदार्थों के वास्तविक स्वरूप पर श्रद्धा करने को सम्यक्त्व कहते हैं। जीवों के स्वभाव भेद के अनुसार इसकी प्राप्ति दस प्रकार से होती है। निसग्गुबएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमविस्थार रुई किरिया संवधम्मरुई || ( १ ) निसर्गरुचि- जीवादि तत्त्वों पर जाति स्मरणादि ज्ञान द्वारा जान कर श्रद्धान करना निसर्गरुचि सम्यक्त्व है । अर्थात् मिथ्यात्वमोहनीय का क्षयोपशम, क्षय या उपशम होने पर गुरु • आदि के उपदेश के बिना स्वयमेव जाति स्मरण या प्रतिभा आदि ज्ञान द्वारा जीव आदि तत्त्वों का स्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से अथवा नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, इन चार निक्षेपों द्वारा जान कर उन पर दृढ श्रद्धा करना तथा जिनेन्द्र भगवान् द्वारा बताए गए जीवादि तत्व ही यथार्थ है, सत्य हैं, वैसे ही हैं, इस मकार विश्वास होना निसर्गरुचि है। (२) उपदेशरुचि - केवली भगवान् अथवा कब्रस्थ गुरुओं " का उपदेश सुन कर जीवादि तत्वों पर श्रद्धा करना उपदेश रुचि है ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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