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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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(१०) महासेन कृष्णा- कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की दसवीं रानी का नाम महासेन कृष्णा था। उसने आर्या चन्दनवाला के पास दीक्षा लेकर आयंबिल वर्द्धमान तप किया । इस की विधि इस प्रकार है- एक आयंबिल कर उपवास किया जाता है, दो आयंबिल कर एक उपवास किया जाता है। फिर तीन आयंबिल कर एक उपवास किया जाता है। इस तरह एक सौ आयंबिल तक बढ़ाते जाना चाहिए। बीच बीच में एक उपवास किया जाता है । इस तप में १०० उपवास और ५०५० आयंबिल होते हैं। यह तप चौदह वर्ष तीन महीने बीस दिन में पूर्ण होता है। ___ उपरोक्त तप की सूत्रोक्त विधि से आराधना कर महासेन कृष्णा आयो अपनी आत्मा को भावती हुई तथा उदार (प्रधान), तप से अति ही शोभित होती हुई विचरने लगी। एक दिन अर्द्ध रात्रि व्यतीत होने पर उसको ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि अब मेरा शरीर तपस्या से अति दुर्बल हो गया है, अत: जब तक मेरे शरीर में उत्थान, बल, वीये, पुरुषाकार पराक्रम है तब तक संलेखना कर लेनी चाहिए।
प्रातः काल होने पर आर्या चन्दनवाला की आज्ञा लेकर संलेखना की । मरण की वाञ्च्छा न करती हुई तथा आर्या चन्दनबाला के पास से पढ़े हुए ग्यारह अंगों का स्मरण करती हुई धर्मध्यान में तल्लीन रहने लगी। साठ भक्त अनशन का छेदन कर और एक महीने की संलेखना कर जिस कार्य के लिए उसने दीक्षा ली थी उसे पूर्ण किया अर्थात् केवल ज्ञान, केवल दर्शन उपार्जन कर अन्तिम समय में मोक्ष पद प्राप्त किया। ____ इन दस ही आर्याओं के दीक्षा पर्याय का समय इस प्रकार हैकाली आर्या ८ वर्ष, सुकाली आर्या : वर्ष, महाकाली आर्या
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