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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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गोशालक- संसार रूपी महान् समुद्र में नष्ट होने वाले, डूबने वाले, बारम्बार गोते खाने वाले तथा बहने वाले बहुत से जीवों को धर्म रूपी नौका से निर्वाण रूपी किनारे पर पहुँचाने वाले श्रमण भगवान् महावीर हैं। इस लिए उन्हें महानिर्यामक कहा है।
फिर सदालपुत्र श्रावक मंखलिपुत्र गोशालक से इस प्रकार कहने लगा कि हे देवानुप्रिय ! आप अवसरज्ञ (अवसर को जानने वाले) हैं और वाणी में बड़े चतुर हैं। क्या आप मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर के साथ विवाद (शास्त्रार्थ) करने में समर्थ हैं ? गोशालक- नहीं। . सद्दालपुत्र- देवानुप्रिय ! आप इस प्रकार इन्कार क्यों करते हैं ? क्या आप भगवान् महावीर के साथ शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हैं ? गोशालक-जैसे कोई बलवान् पुरुष किसी बकरे, मेंढ़े, सूअर, मुर्गे, तीतर, बटेर, लावक, कबूतर, कौश्रा, बाज आदि पक्षी को उसके हाथ, पैर, खुर, पूँछ, पंख, बाल आदि जिस किसी जगह से पकड़ता है वह वहीं उसे निश्चल और निःस्पन्द करके दबा देता है। जरा भी इधर उधर हिलने नहीं देता है। इसी प्रकार श्रमण भगवान् . महावीर से मैं जहाँ कहीं कुछ प्रश्न करता हूँ अनेक हेतुओं और
युक्तियों से वे वहीं मुझे निरुत्तर कर देते हैं। इसलिए मैं तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हूँ। ___ तब सद्दालपुत्र श्रमणोपासक ने गोशालक से कहा कि आप मेरे धमोचार्य के यथार्थ गुणों का कीर्तन करते हैं। इसलिए मैं आपको पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि देता हूँ , किन्तु कोई धर्म या तप समझ कर नहीं । इसलिए आप मेरी
दुकानों पर से पीठ, फलक शय्या आदि ले लीजिए ।सद्दालपुत्र