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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
बैल जुड़े हुए हों, जिसका धोंसरा बिल्कुल सीधा, उत्तम और अच्छी बनावट वाला हो। आज्ञा पाकर नौकरों ने शीघ्र ही वैसा रथ लाकर उपस्थित किया। अमिमित्रा भार्या ने स्नान आदि करके उत्तम वस्त्र पहने और अल्प भार एवं बहुमूल्य वाले आभूषणों से शरीर को अलंकृत कर बहुत सी दासियों को साथ लेकर रथ पर सवार हुई । सहस्राम्र वन में आकर रथ से नीचे उतरी। भगवान् को वन्दना नमस्कार कर खड़ी खड़ी भगवान् की पर्युपासना करने लगी। भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर अग्निमित्रा भार्या ने श्राविका के बारह व्रत स्वीकार किये। भगवान् । को वन्दना नमस्कार कर वह वापिस अपने घर चली आई। भगवान् पोलासपुर से विहार कर अन्यत्र विचरने लगे। जीवाजीवादि नव तत्त्वों का ज्ञाता श्रावक बन कर सद्दालपुत्र भी धर्म ध्यान में समय बिताने लगा। - मंखलिपुत्र गोशालक ने जब यह वृत्तान्त सुना कि सदालपुत्र
ने आजीविक मत को त्याग कर निर्ग्रन्थ श्रमण का मत अङ्गीकार • किया है तो उसने सोचा "मैं जाऊँ और आजीविकोपासक - सदालपुत्र को निर्ग्रन्थ श्रमण मत का त्याग करवा कर फिर
आजीविक मत का अनुयायी बनाऊँ" ऐसा विचार कर अपनी . शिष्य मण्डली सहित वह पोलासपुर नगर में आया। आजीविक : सभा में अपने भण्डोपकरण रख कर अपने कुछ शिष्यों को .साथ ले सदालपुत्र श्रावक के पास आया। गोशालक को आते देख सदालपुत्र श्रावक ने किसी प्रकार का आदर सत्कार नहीं किया किन्तु चुपचाप बैठा रहा। तब पीठ, फलक,शय्या,संस्तारक
आदि लेने के लिए भगवान महावीर के गुणग्राम करता हुआ
गोशालक बोला- हे देवानुप्रिय! क्या यहाँ महामाहण पधारे थे? । . सदालपुत्र- आप किस महामाहण के लिए पूछ रहे हो ?