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बी जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
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किया । साठ भक्त अनशन को पूरा कर अर्थात् एक मास की संलेखना कर समाधि मरण को प्राप्त हुआ और सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणाभ नामक विमान में उत्पन्न हुआ । वहाँ चार पल्योपम की स्थिति को पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और उसी भव में सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त होकर सब दुःखों का अन्त कर मोक्ष सुख को प्राप्त करेगा। (३) चुलनीपिता श्रावक- वाराणसी (बनारस) नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसी नगरी में चुलनीपिता नाम का एक गाथापति रहता था। वह सब तरह से सम्पन्न और अपरिभूत था। उसके श्यामा नाम की धर्मपत्नी थी। चुलनीपिता के पास बहुत ऋद्धि थी। आठ करोड़ सोनये खजाने में रखे हुए थे, आठ करोड़ व्यापार में और आठ करोड़ पविस्तार (धन्य धान्यादि)में लगे हुए थे। दस हजार गायों के एक गोकुल के हिसाब से आठ गोकुल थे अर्थात् उसके पास कुल अस्सी हजार गायें थीं। वह उस नगर में प्रानन्द श्रावक की तरह प्रतिष्ठित एवं मान्य था। एक समय भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । वह भगवान् को वन्दना नमस्कार करने गया और कामदेव श्रावक की तरह उसने भी श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किये । एक समय पौषधोपवास कर पौषधशाला में बैठा हुमा धर्मध्यान कर रहा था। अर्द्ध रात्रि के समय उसके सामने एक देव प्रकट हुआ और कहने लगा कि यदि तू अपने व्रत नियमादि को नहीं मांगेगा तो मैं तेरे बड़े लड़के को यहाँ लाकर तेरे सामने उसकी घात करूँगा, फिर उसके तीन टुकड़े करके उबलते हुए गर्म तैल की कड़ाही में डालँगा और फिर उसकामांस और खून तेरे शरीर पर छिड़कँगा जिससे