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मी जैन सिद्धान्त पोल संपह
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छोड़ कर किसी विशेष ज्ञान वाले गुरु का आश्रय लेना।
(भगवती शतक २५ उद्देशा ७) (ठाणांग, सत्र ७४९)
(उत्तराध्ययन अध्ययन २६)(प्रवचनसारोद्धार) ६६५- प्रव्रज्या दस
गृहस्थावास छोड़ कर साधु बनने को प्रवज्या कहते हैं। इसके दस कारण हैं(१) छन्द- अपनी या दूसरे की इच्छा से दीक्षा लेने को छन्द प्रव्रज्या कहते हैं। जैसे-गोविन्दवाचक या सुन्दरीनन्द ने अपनी इच्छा से तथा भवदत्त ने अपने भाई की इच्छा से दीक्षा ली। (२)रोष-रोष अर्थात् क्रोध से दीक्षा लेना। जैसे-शिवभूति। (३) परिघुना-दारिद्रय अर्थात् गरीबी के कारण दीक्षा लेना। जैसे-- लकड़हारे ने दीक्षा ली थी। (४)स्वम-विशेष प्रकार का स्वम माने से दीक्षा लेना। जैसेपुष्पचूला । अथवा स्वम में दीक्षा लेना। (५) प्रतिश्रुत-श्रावेश में आकर या वैसे ही प्रतिज्ञा कर लेने से दीक्षा लेना। जैसे-शालिभद्र के बहनोई धना सेठ ने दीक्षा ली थी। (६) स्मारणादि- किसी के द्वारा कुछ कहने या कोई दृश्य देखने से जातिस्मरण ज्ञान होना और पूर्वभव को जान कर दीक्षा ले लेना । जैसे- भगवान् मल्लिनाथ के द्वारा पूर्वभव का स्मरण कराने पर प्रतिबुद्धि आदि छः राजाओं ने दीक्षा ली। (७) रोगिणिका- रोग के कारण संसार से विरक्ति हो जाने पर ली गई दीक्षा । जैसे सनत्कुमार चक्रवर्ती की दीक्षा। (८) अनादर- किसी के द्वारा अपमानित होने पर ली गई दीक्षा। जैसे-नंदिषेण। अथवा अनाहत अर्थात् शिथिल की दीक्षा। (६)देवसंज्ञप्ति-देवों के द्वारा प्रतिबोध देने पर ली गई दीक्षा जैसे- मेतार्य मुनि ।