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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाना
(१) श्रोत्रेन्द्रियमुण्ड- श्रोत्रेन्द्रिय के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला। (२)चक्षुरिन्द्रियमुण्ड- चक्षुरिन्द्रिय के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला। (३) प्राणेन्द्रियमुण्ड- प्राणेन्द्रिय के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला। (४) रसनेन्द्रियमुण्ड- रसनेन्द्रिय के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला। (५) स्पर्शनेन्द्रियमुण्ड-- स्पर्शनेन्द्रिय के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला। (६) क्रोधमुण्ड- क्रोध छोड़ने वाला। (७) मानमुण्ड- मान का त्याग करने वाला। (८) मायामुण्ड- माया अथोत् कपटाई छोड़ने वाला। (8) लोभमुण्ड- लोभ का त्याग करने वाला। (१०) सिरमुण्ड-सिर मुंडाने वाला अर्थात् दीक्षा लेने वाला।
(ठाणांग, सूत्र ७४६) ६६०- स्थविर दस
बुरे मार्ग में प्रवृत्त मनुष्य को जो सन्मार्ग में स्थिर करे उसे स्थविर कहते हैं। स्थविर दस प्रकार के होते हैं - (१) ग्रामस्थविर-गांव में व्यवस्था करने वाला बुद्धिमान् तथा प्रभावशाली व्यक्ति जिसका वचन सभी मानते हों। (२) नगरस्थविर- नगर में व्यवस्था करने वाला, वहाँ का माननीय व्यक्ति। (३) राष्ट्रस्थविर- राष्ट्र का माननीय तथा प्रभावशाली नेता। (४) प्रशास्तृस्थविर- प्रशास्ता अर्थात् धर्मोपदेश देने वाला। (५) कुलस्थविर-लौकिक अथवा लोकोत्तर कुल की व्यवस्था