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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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को सुनकर और समझकर भी दूसरे धर्म की ओर रुचि वाला होता है । सातवें वाला सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है, अर्थात् उसे धर्म पर श्रद्धा तो होती है लेकिन व्रत अंगीकार नहीं कर सकता । आठवें वाला श्रावक के व्रत ले सकता है किन्तु साधु नहीं हो सकता। नवें नियाणे वाला साधु हो सकता लेकिन उसी भव में मोत नहीं जा सकता। (दशाश्रुतस्कन्ध १० वी दशा) ६४५- लौकान्तिक देव नौ ___(१) सारस्वत (२) आदित्य (३) वह्नि (४) वरुण (५) गर्दतोय (६) तुषित (७) अव्यावाघ (E)आग्नेय और (8)रिष्ठ। __इनमें से पहले आठ कृष्णराजियों में रहते हैं। कृष्णराजियों का स्वरूप आठवें वोल संग्रह के बोल नं०६१६ में बता दिया गया है । रिष्ठ नामक देव कृष्णगजियों के बीच में रिष्टाभ नामक विमान के प्रतर में रहते हैं। (ठाणांग, सत्र ६८४) ६४६- बलदेव नौ ___ वासुदेव के बड़े भाई को बलदेव कहते हैं । बलदेव सम्यग्दृष्टि होते हैं तथास्वर्ग या मोक्ष में ही जाते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं
(१) अचल (२) विजय (३) भद्र (४) सुपम (५) सुदर्शन (६) आनन्द (७) नन्दन (८) पद्म (रामचन्द्र) और () राम (बलराम)। इन में बलराम को छोड़ कर बाकी सब मोक्ष गए हैं। नवें बलराम पाँचवे देवलोक गए हैं। __ (हरिभद्रीयावश्यक भाग १) ( प्रवचनसारोद्धार द्वार २०६) (समवायांग १५८) ६४७- वासुदेव नौ
प्रतिवासुदेव को जीत कर जो तीन खण्ड पर राज्य करता हैं उसे वासुदेव कहते हैं । इसका दूसरा नाम अर्धचक्री भी है।