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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह
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अनशन के २० भेद अनशन के दो मुख्य भेद हैं- इत्वरिक और यावत्कथिक। इत्वरिक के १४ भेद-चतुर्थभक्त,पष्ठभक्त, अष्टमभक्त, दशमभक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, षोडशभक्त, अर्द्ध मासिक, मासिक, द्वैमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पञ्चमासिक, पाएमासिक । .., यावत्कथिक के छः भेद- पादपोपगमन, भक्त प्रत्याख्यान, इंगित मरण । इन तीनों के निहारी और अनिहारी के भेद से छः भेद हो जाते हैं।
आहार का त्याग करके अपने शरीर के किसी अङ्ग को किंचिन्मात्र भी न हिलाते हुए निश्चल रूप से संथारा करना पादपोपगमन कहलाता है। पादपोपगमन के दो भेद हैं-व्याघातिम और नियाघातिम। सिंह, व्याघ्र तथा दावानल (वनाग्नि)
आदि का उपद्रव होने पर जोसंथारा (अनशन)किया जाता है वह व्याघातिम पादपोपगमन संथारा कहलाता है। जो किसी भी उपद्रव के बिना स्वेच्छा से संथारा किया जाता है वह निर्व्याधातिम पादपोपगमन संथारा कहलाता है। चारों प्रकार के आहार का अथवा तीन आहार का त्याग करना भक्तमत्याख्यान कहलाता है। इसको भक्तपरिज्ञा मरण भी कहते हैं !
दूसरे साधुओं से वैयावच्च न करवाते हुए नियमित प्रदेश की हद में रह कर संथारा करना इंगित मरण कहलाता है। ये तीनों निहारी और अनिहारी के भेद से दो तरह के होते हैं। निहारी संथारा ग्राम के अन्दर किया जाता है और अनिहारी ग्राम से बाहर किया जाता है अर्थात् जिस मुनि का मरण ग्राम में हुआ हो और उसके मृत शरीर को ग्राम से बाहर लेजाना पड़े तो उसे निहारीमरण कहते हैं। ग्राम के बाहर किसी पर्वत की गुफा आदि में जो मरण हो उसको अनिहारी मरण कहते हैं।