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मी जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
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दर्शनावरणीय, अचक्षु दर्शनावरणीय, अवधि दर्शनावरणीय, "केवल दर्शनावरणीय) और पाँच निद्रा (निद्रा, निद्रानिद्रा,प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि)। वेदनीय की एक, असाता वेदनीय । - मोहनीय कर्म की २६ प्रकृतियाँ-चार कषाय अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ के अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन के भेद से १६ भेद । नोकषाय के नौ- हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। मिथ्यात्व मोहनीय ।
छः संहनन में से वज्रऋषभनाराच संहनन को छोड़कर शेष पाँच (ऋषभनाराच, नाराच, अर्ध नाराच, कीलक, सेवार्त)। '. छःसंस्थान में से.समचतुरस्र संस्थान को छोड़कर शेष पाँच (न्यग्रोध, परिमण्डल, खाति, वामन, कुब्ज, हुंडक)। स्थावरदसक- (स्थावर नाम, सूक्ष्म नाम, साधारण नाम, अपयोप्त नाम, अस्थिर नाम, अशुभ नाम, दुर्भग नाम, दुःस्वर नाम, अनादेय नाम, अयश कीर्ति नाम) नरकत्रिक (नरक गति, नरकानुपूर्वी, नरकायु)। तिर्यश्च गति, तिर्यश्चानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति । अशुभ वर्ण, अशुभ गन्ध, अशुभ रस, अशुभ स्पर्श, उपघात नाम, नीच गोत्र । अन्तराय कर्म की ५ प्रकृतियाँ (दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय) अशुभ विहायोगति । ये सब मिलाकर पाप तत्त्व के ८२ भेद हुए।
भाव तत्व आश्रव के सामान्यतः२० भेद हैं-पाँच अवत(पाणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह)। पाँच इन्द्रियाँ-श्रोत्रेन्द्रिय
आदि पाँच इन्द्रियों की अपने अपने विषय में स्वच्छन्द प्रवृत्ति (उनको वश में न रखना)। ५ भाव- (मिथ्यात्व, अविरति,