________________
. श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला
बंधे हुए पुण्य का फल ४२ प्रकार से भोगा जाता है
(१) सातावेदनीय (२) उच्चगोत्र (३) मनुष्यगति (४) मनुष्यानुपूर्वी (५)मनुष्यायु (६) देवगति (७) देवानुपूर्वी (८) देवायु (8) पञ्चेन्द्रिय जाति (१०) औदारिक शरीर (११) वैक्रिय शरीर (१२) आहारक शरीर (१३) तैजस शरीर (१४)कार्मण शरीर (१५) औदारिक अङ्गोपाङ्ग (१६) वैक्रिय अङ्गोपाङ्ग (१७) आहारक अङ्गोपाङ्ग (१८) वज्रऋषभ नाराच संहनन (१६) समचतुरस्र संस्थान (२०) शुभ वर्ण (२१) शुभ गन्ध (२२) शुभ रस (२३) शुभ स्पशे (२४) अगुरुलघु (२५) पराघात (२६) श्वासोच्छ्वास (२७) श्रातप (२८) उद्योत (२६) शुभविहायोगति (३०) निमोण नाम (३१) तीथंङ्कर नाम (३२) तिर्यश्चायु (३३) त्रस नाम (३४) बादर नाम (३५) पर्याप्त नाम (३६) प्रत्येक नाम (३७) स्थिर नाम (३८) शुभ नाम (३६) सुभग नाम (४०) सुस्वर नाम (४१) आदेय नाम (४२) यश कीर्ति नाम।
__ पाप तत्त्वपाप १८ प्रकार से बांधा जाता है। उनके नाम(१) प्रणातिपात (२) मृषावाद (३) अदत्तादान (४)मैथुन (५) परिग्रह (६) क्रोध (७) मान (८) माया (६) लोभ (१०) राग (११) द्वेष (१२) कलह (१३) अभ्याख्यान (१४) पैशुन्य (१५) परपरिवाद (१६) रति अरति (१७) माया मृषा (१८) मिथ्यादर्शन शल्य। इस प्रकार बंधे हुए पाप का फल ८२ प्रकार से भोगा जाता है।
ज्ञानावरणीय की ५ प्रकृतियाँ (मति ज्ञानावरणीय, श्रुत ज्ञानावरणीय, अवधि ज्ञानावरणीय, मनःपर्यय ज्ञानावरणीय, केवलज्ञानावरणीय)दर्शनावरणीय की नो-चार दर्शनावरणीय (चक्षु