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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
- इनमें मद्य और मांस तो सर्वथा वर्जित हैं। श्रावक इनका सेवन नहीं करता । बाकी का भी यथाशक्ति त्याग करना चाहिए।
(ठाणांग, सूत्र ६७४ ) (हरिभद्रीयावश्यक प्रत्याख्यान अध्ययन) ६३१ भिक्षा की नौ कोटियाँ ...... ___निर्ग्रन्थ साधु को नौ कोटियों से विशुद्ध आहार लेना चाहिए। । (१) साधु आहार के लिए स्वयं जीवों की हिंसा न करे।
(२) दूसरे द्वारा हिंसा न करावे । . . . । (३) हिंसा करते हुए का अनुमोदन न करे, अर्थात् उसे भला । न समझे।
(४) आहार आदि स्वयं न पकाये । (५) दूसरे से न पकवावे। (६) पकाते हुए का अनुमोदन न करे । (७) स्वयं न खरीदे। (८) दूसरे को खरीदने के लिए न कहे। (8) खरीदते हुए किसी व्यक्ति का अनुमोदन न करे।
ऊपर लिखी हुई सभी कोटियाँ मन, वचन और काया रूप . तीनों योगों से हैं।
(ठाणांग, सूत्र ६८१)(प्राचारांग अध्ययन २ उद्देशा । सुत्र ८८,८६) ६३२-संभोगी को विसंभोगीकरनेके नौ स्थान है। नौ कारणों से किसी साधु को संभोग से अलग करने
वाला साधु जिन शासन की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। , (१) आचार्य से विरुद्ध चलने वाले साधु को। .. ...(२) उपाध्याय से विरुद्ध चलने वाले को। (३) स्थविर से विरुद्ध चलने वाले को। (४) साधुकुल के विरुद्ध चलने वाले को। .. (५) गण के प्रतिकूल चलने वाले को।