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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
और चमकीले शिखर हैं। संघमेरु के चित्त रूपी शिखर हैं। अशुभ विचारों के हट जाने से वे हमेशा ऊँचे उठे हुए हैं। प्रत्येक समय कर्मरूपी मैल के दूर होने से उज्वल हैं। उत्तरोत्तर सूत्रार्थ का स्मरण करने से हमेशा दीप्त अर्थात् चमकीले हैं। मेरु पर्वत नन्दन वन की मनोहर सुगन्ध से पूर्ण है। संघमेरु में सन्तोष ही नन्दन वन है, क्योंकि वह आनन्द देता है। वह नन्दन औषधियों और लब्धियों से भरा होने के कारण मनोहर है । शुद्ध चारित्र रूप शील ही उसकी गन्ध है। इन सब बातों से संघरूपी मेरु सुशोभित है। मेरु की गुफाओं में सिंह रहते हैं । संघ रूपी मेरु में दया रूप धर्म ही गुफा है, क्योंकि दया अपने और दूसरे सभी को आराम देती है । इस गुफा में कर्मरूपी शत्र को जीतने के लिए उदर्पित अर्थात् घमण्ड वाले
और परतीर्थिक रूपी मृगों को पराजित करने से मृगेन्द्र रूप मुनिवर निवास करते हैं। मेरु पर्वत में चन्द्र के प्रकाश से झरने वाली चन्द्रकान्त आदि मणियाँ, सोना चाँदी आदि धातुएं तथा बहुत सी चमकीली औषधियाँ होती हैं । संघमेरु में अन्वय व्यतिरेक रूप सैकड़ों हेतु धातुएं हैं, मिथ्या युक्तियों का खण्डन करने से वे स्वभावत: चमक रहे हैं। शास्त्र रूपी रत्न हैं जो हमेशा खायोपशमिक आदि भाव तथा चारित्र को झरते (वतात) रहते हैं। अमीपधि वगैरह औषधियाँ उनको व्याख्यानशाला रूप गुफाओं में पाई जाती हैं। मेरु पर्वत में शुद्ध जल के झरते हुए झरने हार की तरह मालूम पड़ते हैं । संघमेरु में प्राणातिपात आदि पाँच आश्रवों के त्याग स्वरूप संवर रूपी श्रेष्ठ जल के झरने झरते हुए हार हैं । कर्म मल को धोने वाला, सांसारिक तृष्णा को दूर करने वाला तथा परिणाम में लाभकारी होने से संवर को श्रेष्ठ जल कहा है। मेरु पर्वत पर मोर नाचते