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श्री सेठिया जैन मन्थमाला
(६) उत्कृष्ट युक्तानन्तक-- जघन्य युक्तानन्त से अभव्यराशि या उसी संख्या का गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त हो उससे एक कम को उत्कृष्ट युक्तानन्तक कहते हैं। (७) जघन्यानन्तान्तक-- जघन्य युक्तानन्तक को उसी से गुणा करने पर या उत्कृष्ट युक्तानन्तक में एक और मिला देने पर जघन्यानन्तानन्तक हो जाता है। (८) मध्यमानन्तानन्तक-- जघन्यानन्तान्तक से आगे की सब संख्या मध्यमानन्तानन्तक है। उत्कृष्टानन्तानन्तक नहीं होता।
किसी आचार्य का मत है कि जघन्य अनन्तों को तीन बार गुणा करके उसमें छः निम्नलिखित अनन्त बातों को मिला। (१) सिद्ध (२) निगोदजीव (३) वनस्पति (४) भूत भविष्यत् और वर्तमान तीनों कालों के समय (५) सब पुद्गलपरमाणु और (६) अलोकाकाश । इनको मिलाने के बाद जो राशि प्राप्त हो उसे फिर तीन बार गुणा करे। तब भी उत्कृष्टानन्तानन्तक नहीं होता। उसमें केवल ज्ञान और केवल दर्शन के पर्याय मिला देने पर उत्कृष्टानन्तानन्तक होता है। केवल ज्ञान और केवल दर्शन की पर्यायों में सभी का समावेश हो जाता है। इसलिए उनके मिला देने पर उत्कृष्ट हो जाता है। उसके आगे कोई संख्या नहीं रहती। सूत्रकार के अभिप्राय से तो इस प्रकार भी उत्कृष्ट अनन्तानन्तक नहीं होता । वास्तविक बात तो केवली भगवान् बता सकते हैं। शास्त्रों में जहाँ जहाँ अनन्तानन्तक आया है वहाँ मध्यमानन्तानन्तक ही समझना चाहिए। (अनुयोगद्वार, सूत्र १४६ ) ६२१- लोकस्थिति पाठ
पृथ्वी, जीव, पुद्गल वगैरह लोक जिन पर ठहरा हुआ है उन्हें लोकस्थिति कहते हैं । वे आठ हैं(१) आकाश-- तनुवात और घनवात रूप दो तरह का वायु