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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(ख ) वीरासन- बायाँ पैर दक्षिण जंघा पर और दक्षिण पैर वाई जंघा पर रखने से वीरासन होता है। हाथों को इसमें भी पर्यङ्कासन की तरह रखना चाहिए। इसको पद्मासन भी कहा जाता है। एक ही पैर को जंघा पर रखने से अर्द्धपद्मासन होता है। अगर इसी अवस्था में पीछे से ले जाकर दाँए हाथ से बायाँ अङ्गठा तथा वाएँ हाथ से दायाँ अङ्गठा पकड़ ले तो वह बद्धपद्मासन हो जाता है। (ग) वज्रासन- बद्धपद्मासन को ही वज्रासन कहते हैं। यह वेतालासन भी कहा जाता है। (घ ) वीरासन- कुर्सी पर बैठे हुए व्यक्ति के नीचे से कुर्सी खींच ली जाय तो उसे वीरासन कहा जाता है । वीरासन का यह स्वरूप कायक्लेश रूप तप के प्रकरण में आया है । पतञ्जलि के मत से एक पैर पर खड़ा रहने का नाम वीरासन है। (ङ) पद्मासन-दक्षिण यावाम जंघाका दूसरीजंघा से सम्बन्ध होना पद्मासन है। ( च ) भद्रासन- पैर के तलों को सम्पुट करके हाथों को कछुए के आकार रखने से भद्रासन होता है। (छ) दण्डासन- जमीन पर उल्टा लेटने को दण्डासन कहते हैं। इसमें अङ्गुलियाँ, पैर के गट्टे और जंघाएं भूमि को छूते रहने चाहिये। (ज) उत्कटिकासन- पैर के तले तथा एड़ी जमीन पर लगे रहें तो उसे उत्कटिकासन कहते हैं । इसी आसन से बैठे हुए भगवान् महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। (क) गोदोहनासन- अगर एड़ी उठाकर सिर्फ पंजों पर बैठा जाय तो गोदोहनासन हो जाता है। पडिमाधारी साधु तथा श्रावकों के लिए इसका विधान किया गया है। (अ) कायोत्सर्गासन- खड़े होकर या बैठ कर कायोत्सर्ग करने