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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
गुरु, लघु, दु, कर्कश, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष । गुरु- जिसके उदय से जीव का शरीर लोहे जैसा भारी हो वह गुरु स्पर्श नामकर्म है।लघु-जिस के उदय से जीव का शरीर पाक की रूई जैसा हल्का होता है वह लघु स्पर्श नामकर्म है । मृदुजिस के उदय से जीव का शरीर मक्खन जैसा कोमल हो उसे मृदु स्पर्श नामकर्म कहते हैं। कर्कश- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कर्कश यानि खुरदरा हो उसे कर्कश स्पर्श नामकर्म कहते हैं । शीत- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कमलदंड जैसा ठंडा हो वह शीत स्पर्श नामकर्म है। उष्णजिस के उदय से जीव का शरीर अग्नि जैसा उष्ण हो वह उष्ण स्पर्श नामकर्म कहलाता है। स्निग्ध-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर घी के समान चिकना हो वह स्निग्ध स्पर्श नामकर्म है। रूक्ष- जिस कर्म से जीव का शरीर राख के समान रूखा होता है वह रूक्ष स्पर्श नामफर्म कहलाता है। __ आनुपूर्वी नामकर्म-जिस कर्मके उदय से जीव विग्रहगति से अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँचता है उसे आनुपूर्वी नामकर्म कहते हैं । आनुपूर्वी नामकर्म के लिये नाथ (नासारज्जु) का दृष्टान्त दिया जाता है। जैसे इधर उधर भटकता हुआ बैल नाथ द्वारा इष्ट स्थान पर ले जाया जाता है । इसी प्रकार जीव जब समश्रेणी से जाने लगता है तब आनुपूर्वी नामकर्म द्वारा विश्रेणी में रहे हुए उत्पत्ति स्थान पर.पहुँचाया जाता है। यदि उत्पत्ति स्थान समश्रेणी में हो तो वहाँ आनुपूर्वी नामकर्म का उदय नहीं होता । वक्रगति में ही आनुपूर्वी नामकर्म का उदय होता है।
गति के चार भेद हैं, इसलिए वहाँ ले जाने वाले आनुपूर्वी नामकर्म के भी चार भेद हैं- नरकानुपूर्वी नामकर्म, तिर्यश्चानुपूर्वी नामकर्म, मनुष्यानुपूर्वी नामकर्म और देवानुपूर्वी नामकर्म।